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( १२६ ) चक छोडा" । क्या तुम्हारी राज्य लिप्सा ने भाई का प्रेम भी भुला दिया?
जब तुम तीन न्यायिक युद्धो मे परास्त हो चुके थे तो मात्र अह की चादर ओढे तुम्हारे विचारो ने तुम्हे अन्याय का युद्ध करने को पुकारा और तुम हत् बुद्धि हो उठे।
पर तुम यह नहीं जान सके कि यह चक्र अपने सहोदर पर, चरमशरीरी पर, मुनि पर, और परिजन पर नहीं चला करता। तुमने क्यो अपने विचारो को घृणित कर डाला । प्राज ससार मे बतायो तो कौन इस गार्य की प्रशसा कर रहा है। ___ ओफ ! | | राज्य, सम्पदा, और घोथे मान सम्मान के लिए मानव अपनी मानवता का गला क्यो घोट बैठना है। वह क्यो अपनत्व को भूलकर जगत-जाल में फंस जाता है ? ___धिक्कार है । विक्कार है।। विवकार हे इस समार के प्रपच ने । सनल समय से भटकती यह यात्मा सयोगदा मानव देह पाती है और इसे भी यह सासरिक वासनानो की जहरीली गन्ध से यह दूपित कर बैठती है।।
धिक्कार है लोभ, लालच, लालसा और लिप्सा को जिसके कारण भाई भाई को मारने तो तैयार है।
विककार है इत्त माया मोह के मिथ्या जाल को। जो मात्र हवावा ह । घोरण है एक भूत भुलया है।
फिर भी तुमने मेरे हित मे भला कार्य किया है। तुमने मुझे सोते ते भगा दिया है। तुमने मुझे मनार की अनलियत दिखा दोहै। तुम धन्य हो । नो, सम्हालो अपने च को और हम कासकोट सम सम्पदा को मुझे पान अपनल मा भान हो गया । मुझे अक परना भी क्या ।
में पा प्राम शरण के पथ पर चल गा। अयम