________________
( १२५ ) भरत एकदम खडा हो गया और मार खाए भयकर सर्प की तरह फुकारे मारने लगा। करता भी क्या ? कोई भी तो चारा नहीं था उसके पास तभी .."
तभी उन्हे अपने चक्र की याद आई । बिना सोचे समझे ." उतावले और क्रोध की आग मे भूल से भरत ने चक्र—बाहुबली की ओर छोड़ दिया ! चारो तरफ से हाय हाय की करण ध्वनि कैंप उठी। भरत जी ने यह क्या किया ? भरतजी ने ऐला क्यो किया ? अादि बाते होने लगी। ___ निणयको ने भी इसे अनुचित कहा। सब ओर से भरत की निन्दा की जा रही थी। सब स्तब्ध से खडे थे-सक्दो यह चिन्ता हो उठी कि-~अब बाहुबली मारे जाएंगे क्योकि चक जिस पर चल गया वह जीवित रह ही नहीं सकता। __ पर यह क्या ? .. · चक्र भरत के हाथ से छूटा तो बाहुनी की परिक्रमा देकर बाहुबली के हाथ मे पानार रुक गया। समोर जय, जय की महान् नाद गूज उठी देवगण युप्प वरसा उठ और बाहुबली की विजय घोषित कर दी गई। भरत शरम के मार मरा जा रहा था। वह आज महान् पराजय ले चुका था । बाहुना मुस्करा रहे थे। तभी बाहुबली बोले . ." __ "शाबाश भैया । नाज तुभने यह दिखा दिया है कि राज्य लोलुपता मनुष्य को कितना निरा देनी है। तुमने यह भी विचार नहीं किया कि यु. करके मालिर मिलेगा क्या ?
एक भाई यो परास्त करक मान तुम्हारी लोलपता की श्री तो पूर्ति होती ... जोवन सी कौन सी मफलता मिलती तुम्हे ? ___ रचनाते वक्त यह भी तुमने नही विचारा मि यह चक्र जिस पर भी वार करता है --उने मातु की गोद मे ही सुलाकर घोता है । पौर तुमने मुझे मृत्यु की गोद मे सुलाने के लिए ही