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घृणित जग कीचड़ से निकलना अच्छा समझता हूँ ।"
और देखते देखते बाहुबली जी ने उदासीनता की छाया मे चैराग्य कवच को धारण कर लिया। बाहुबली भगवान आदिनाथ के चरणो पर गया और दीक्षित हो गया ।
भरत 1 वह परास्त हुग्रा भरत भुका जा रहा था । वह नम्र हो उठा था और अपनी भूल उसे ज्ञात हो चुकी थी । पर करे भी क्या ? खैर पोदनपुर पर विजय ध्वज फहराकर यहाँ का राज्य अपने पुत्र को देकर प्रस्थान किया ?
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X प्रयोध्या वासी प्रतीक्षा मे थे कि कव पोदनपुर से समाचार श्राए । तभी विजयपताका फहराता हुआ सन्देश वाहक याया और जय भरत । जयभरत का नारा बुलन्द करता हुग्रा अयोध्या के द्वार पर आकर रुक गया ।
योध्या वासियो ने विजय सुनी तो नाच उठे । आज अयोध्या पुन सज उठी ।
मंगल वेला मे भरत ने श्रपने विजय चक्र के साथ अयोध्या मे प्रवेश किया ।
श्राज आनन्द योर सुस की लहर अयोध्या में छा रही थी । भरत प्राज छहखण्डाधिपति बनकर चक्रवर्ती हो गए ये 'भूमण्डल के कोने कोने में भारत की ही यश-गाथा गाई जा रही थी। देश के कौने कौने से राजा महाराजा गरा उपस्थित थे और भत arcfrषेक किया जा रए था।
रति स्वमण्डित और भव्य व रमणीक दिन
गण्डाल बनाया गया था। जिन लो
संचालन भरा हुआ था।
पर
गौरव भरी उमय मोर पर विभिन्न मात्रमादि