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लगा
'शायद दूत पा गया है महाराज ।' 'बाहुवली भी साथ है ना।""भरत ने पूछा। 'वह तो अकेला ही आ रहा है—शायद...'
तभी दूत, पसीनो से तरबतर हापता सा पाया । मण्डप मे - प्रवेश किया और नतमस्तक होकर अभिवादन किया। सेनापति ने प्रश्न किया
'क्या बाहुवलीजी से भेट नहीं हो सकी ?" 'क्यो नही हो सकी । अवश्य हुई है।'
'तो कहो, हमारे सन्देश का प्रत्युत्तर क्या है ?"-"भरत महाराज ने कुछ तनते हुए से पूछा।
' 'बाहुबली जी तो " . ' दूत कहता हुआ घबरा रहा था। तोच रहा था कि भरत जी अभी कुपित हो उठेगे । तभी भरत जी ने पुन पूछा
'क्या कहा है बाहुवली ने हमारे सन्देश के प्रत्युत्तर में ?" 'स्वामिन् ।' दूत अब सब वृत्त निवेदन करने लगा--
'स्वामिन । वाहवली जी ने आधीनता स्वीकार करने से इन्कार कर दिया है।'
'क्यो?? 'वे स्वाभिमानी है और तृप्या भी उनके नहीं है?'
'मैं उसकी प्रशसा नही, प्रत्युत्तर पूछ रहा है। कहो, उनने प्रत्युनर मे क्या कहा
"वे अापके बल, आपके चक्र, और आपकी सेनग को रणमि भ देखना चाहते हैं।' ___ 'या ? १ २' भग्न नौ मार पाए मपं को नह तुंगार । उसकी दर हिम्मत । श्या उमे यह नहीं बताया कि यहाट भूका,