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'जिन्तु महागज । इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा।'
'मुझे यह भी मालूम है। उनले उमकी सेना पर, उसके चकाल पर उम मार के चाक के पहिए पर उस पुण्य के कीटाण पर उनको अभिमान ना हो गया है। जायो। यह दो उससे कि वह अपना अन्तिम और विशेप बल का भी प्रयोग करले । तम उम्सा बल, उमती लेना, उमा वह चमत्ता पहिला चाक) सवयो रग भूमि में दे देगे।'
दा पुरता मा अपना मा नुह लिए जा वेग के साथ प्रस्थान कर गया।
उपर वाम्बली ने अपने सेनापति को बुलाकर कुछ सवारी मन्त्रणा पर करदी।
अन्त सेनापति निर-प्रतीक्षा में बैठे हुए थे। इत प्रभी तक भी सन्देशा पर नहीं गया था । जापति न सोच न पता हा पन मापने दो गया । वह अपन ही गप से बाते कसे