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सर्व भाग मेरे आधीन हो नुका है।'
'यह सब कुछ बताने से पूर्व ही उन्हे ज्ञात था।'
'योह | 1 1.... भरत भी विचारो की लहरो पर तैरने लगे। दूत नतमस्तक होकर वापिस चला गया। सेनापति ने कुछ रहना चाहा..
'महाराज !' '..." हाँ । क्या बात है ? 'अब प्रापती क्या आजा हे?'
'सेनापति जी ! सेना को आदेश दे दो कि वह पोदनपुर की ओर कूच करदे । सारी सेना को नही, कुछ अश को।'
"जैसी त्राज्ञा स्वामिन् ।" सेनापति ने आज्ञा शिरोवार्य की। रणभेरी बज उठी 1 और सेनापति के आदेश के अनुसार सेना का मुल्य अग पोदनपुर की ओर प्रस्थान कर गया ।
पोदनपुर वा बाहो परकोटा विशाल और मजबूत था । चारो ओर खाईया थी। आज मारे पोदनपुर में उत्साह भरे वातावरण की लहर छा रही थी। शहर का बच्चा बच्चा सिपाही वना हुया था। सेना तनी हुई खडी थी। बाहुबली अपने मत्री के साथ गुप्त मन्त्रणा कर रहे थे । मन्त्री को ज्ञात था कि भरत का मुकाबिला करना अशक्य होगा" पर वाहवली जी भुकेंगे भी नहीं। तब क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए । ...इस प्रकार मंत्री के समक्ष दुविधा खड़ी थी।
तभी गुप्तचर ने सन्देश प्रस्तुत किया "भरत महाराज अपनी सेना के साथ हमारी ओर पा रहे है। उनके पागे प्रागे एक चमकता सा स्र्य सरीसा चक्र भी चलता आ रहा है । महाराज भरत के रथ पर ध्वजाएं फहरा रही है। उनकी रेना में गोश पूरे रंग के साथ छाया हुआ है।"