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बालबोध जैन धर्म।। ____ अनुभव माणिक, पारखी', जौहरी आप जिनन्द ।
येही वर मोहि दीजिये, चरन शरन आनन्द ॥३५॥
नोट-यह आलोचना पाठ दर्शन और तोपो पी भगवानो __ दाहिनी और सामने बठकर पदना नाहिगे।
प्रदनावली। १ -आलोचना किसे कहते हैं ? इस पाटको कब और क्यों पहना चाहिये ?
२-" हा ! हा! मै दुट अपराधी " यहांसे लेकर " हम रताये धरि आनन्दा " तक पहो।
३-आदिके चार छन्द और अन्तके दोहे पढ़ो।
४-पंच उदुम्बर, अष्ट मूलगुण, म्प्त व्यसन, पांच मिथ्यात्व. पांच पाप पाच इन्द्रिय, चार गति, सोलह कषाय, इनके केवल नाम बताओ।
५-केवलज्ञानी, अन्तरजामी, अरति, सजीव, परलोक जिवानी. अभक्ष, परमात्मपद, इन्द्र इनसे क्या समझते हो ?
६-सीता, द्रौपदी और अंजनचोर इनके विषयमें जो कथायें प्रसिद्ध है उन्हें सुनाओ।
७–पाठमें जो “ शत आठ जु इन भेदनते" आया है सो १०८ भेद गिनकर बताओ।
८-इस पाठमें जो छन्द अत्यन्त प्रेम और नम्रता लिये हों, उनको पढो।
१-आत्माका अनुभव, २-एक प्रकारका रत्न, ३-परखनेवाले हैं। हे जिनेन्द्र | आप स्वात्मानुभवरूपी रत्नके परीक्षक जौहरी हैं, मुझे यही वरदान दीजिये कि मै आपके चरणोंकी शरणका आनन्द लेता रहू ।