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तोमग भाग 1
.......... कीये तिमनाया भारी, पास्ता नहीं च सिनारी ॥२६॥ इत्यादिक पाए अनन्ना. हम कोने श्री गन्ना । नंतत चिरकाले उपाई. बानी कही न माः ॥२७॥ ताको जु उदे अब आयो. नानाविधि मोहिमता" । फल मुंज जिय दृस्ट पावें, बचनें फैमे मरिगा ॥८॥ तुम जानत केवलजानी'. दर दर को शिवयों नी । हम तो तुम गरन लही है, जिन नाग्न विन्द की ॥२५॥ इक गाँवपती जो होये. मां भी दुनिया दख यो । तुम तीन भुवनके" चामी. दख भेटी अनजामी ॥३०॥ डोपदिको चीर बटाया, मीता प्रति कमल रचाया। अञ्जनसे किये अक्रामी, दुरस मेटो अन्तरजामी ॥३१॥ मेरे अवगुणं न चिताग . प्रभु अपनो निग्द निहाग" । मय दोपरहित कर बामी, दुल मंटो अन्तरजामी ॥३२॥ इन्द्रादिक पद नहि चाहूँ, विपयनमें नहीं लुभाऊँ । नागोंदिक दोष हरीजे, परमातम निज पद दीजे ॥३३॥
दोहा। दोपरहित जिनदेवजी, निज पद दीजे मोय । मर जीवनके सुख बढे, आनन्द मंगल होय ॥ ३४ ॥ ५-तृष्णा अर्थात् लाभ कमायके वा, २-जरा भी, ३-बात, ४लगातार, ५-बहुत काल नक, ६-अनेक प्रकार, ७-दुप दिया, ८-भोगते हुए, ९-ससारफे समस्त पदार्थाको जानने वाले, १०-सिद्ध, ११-कीति, १२-एक गांवका स्वामी, १३-तीनों लोकोंक, १४-इच्छारदित, १५हृदयकी बात जाननेवाले, १६-दोष, १७-विचारो, १८-देग्यो, १९राग द्वेष वगैरह दोष, २०-सिद्धपद ।
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