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________________ 41 भोगोरभागनिन है। जो प्रज्ञा जल्द है ज्यादा ग्रहण करने योग्य नहीं हैं, उनका दो सर्वथा जानके लिए त्याग करना चाहिए और को भय तथा इन करने योग्य हैं, उनका भी त्याग यही वंच. जिन महीना. ई वगैरह काही मचाना लेकर करना चाहिए। ४ मक्षि नहित, फसी इडा वित. ध नि बरह श्रेष्ठ पुन्गा दान देनाः अनियिविभाव है। दान चार प्रकार है:- आहारज्ञान, ज्ञानज्ञान, ३ गोषदान, ४ अभयदान । १ मुनि, त्यागी, श्रावक व्रती तथा भूले. जनाय विधवाऑको भोजन देना आवारजन है ।। २ पुन वॉटना: पाउमालाएँ खोलना व्याख्यान देकर धर्म और कन्या ज्ञान कराना ज्ञानज्ञान है। गंगा पनुष्योंको औश्य देना. उनकी को करना भोपत्रवान है। ४ जीबी रक्षा करना अयन मुनि त्यगी और ब्रहचारी टोगनिबनके लिए स्थान बनवाना. अंधेरी राव, सडकॉस लेना जलवाना, चौकी पहरा लगना. गेला पुरुषाको दान्त्र और संक्से निकालना अभयदान है। प्रश्नावली।
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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