________________ जैन-ग्रन्थ-संग्रह। 277 दोय लाख देत है अगोपसों // 15 // सु अग्रवाल वोलिये जुमाल मोह दीजिये। दिनार देंहु एक लक्ष सो गिनाय लीजिये / खंडेलवाल बोलिया जु दोय लाख देंउगो। सुवांटि केतमोल मैं जिनेन्द्रमाल लेउँगो // 16 // जु संभरी कहें सु मेरि खानि लेहुं जाय / सुवर्ण खानि देत हैं चितौडिया बुलायके / अनेक भूप गांव देत रायसो चंदेरिका / खजान खोलि कोठरीं सु देत हैं अमेरिका // 17 // सुगौड़वाल यों कहै गयन्द वीस लोलिये। मदाय देउ हेमदन्त माल मोहि दीजिये / पमार के तुरङ्गः लोजि देत हैं विनागने / लगाम जीन पाहुड़ जड़ाउ हेमके वने // 18 // कनौजिया कपूर देत गाड़िया भरायके। सुहीर मोति लाल देत ओशवाल आयके / सु हमड़ा हकारहीं हमैं न माल देउगे / भराइये जिहाज में कितेक दाम लेउगे॥१॥ कितेक लोग आयके खड़ते हाथ जोरके / कितक भूप देखिके चले नुवाग मोरिकें / कितेक सूम यों कहूँ जु कैसै लक्षि देत है।। लुटाय माल आपनों सु फूलमाललेत हौ // 20 // कई प्रवीन श्राविका जिनेन्द्र को वधावहीं। कई सु कंठ रागसों खड़ी जुमाल गावहीं / कईसु नत्यको करैं नहैं अनेक भावहीं। कई मृदङ्ग तालपे सु अंगको फिरारहीं // 22 // कहैं गुरू उदार धी सुयों न माल पाइये // कराइये जिनेन्द्र यज्ञ विवहू भराइये। चलाइये जु संघ जात संघही कहाइये / तचे अनेक पुण्यस अमोल माल पाइये // 22 // संबोधि सर्व गोटिसो गुरू उतारके लई / दुलाय के जिनेंद्रमाल संघ रायको दई / अनेक हर्षसो करें जिनेंद्र तिलक पाईये / सुमाल श्रीजिनेंद्रकी विनोदीलाल गाइये // 23 // दोहा / माल भई भगवन्तकी, पाई संग नरिन्द /