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जैन-ग्रन्थ-संग्रह।
है । सुइंद्रने उछाहसों जिनेंद्रको चढ़ाई है ॥६॥ सुमागहीं अमोल माल हाथ जोरि वानियें । जुरी तहां चुरासि जाति रावराज जानिये । अनेक और भूपलोग सेठ साहु को गर्ने । कहाल नाम वर्णिये सुदेखते सभा वनें ॥७॥ खंडेलवाल जैसचाल अग्रवाल आइया वरवाल पोरवाल देशवाल छाइया ।। सहेलवाल दिल्लिवाल सेतवाल जातिके । बघेरवाल पुष्पमाल श्री श्रीमाल पांतिके ॥८॥ सुओसवाल पल्लिवाल चूरुवाल चौसखा । पद्मावतीय पोरवाल दूसरा अठसखा ॥ गंगेरवाल बंधुराल तोर्णवाल सोहिला । करिदवाल पचिवाल मेडवाल खाहिला | लवेंचु और माहुरे महेसुरी उदार हैं । सुगोलालारे गोलापूर्व गोलहूं सिंघार हैं । चंधनौर मागधी विहारवाल गूजरा। सुखंड राग होय और जानराज दूसरा ॥१०॥ भुराल और मुराल और सोरठी चितौरिया। कपाल सोमराठ वर्ग हूमड़ा नागौरिया ॥ सीरीगहोड़ भंडिया कनौजिया अजो धिया। मिवाड़ मालवान और जोधड़ा समाधिया ॥१॥ सुभट्टनर रायवल्ल नागरा रुघाकरा। सुकंथ रारु जालु रारु वालमीक भाकरा ॥ पमार लाड़ चोड़ कोड़ गोड़ मोड़ संभरा। सु खंडिआत श्री खंडा चतुर्थ पंचमं भरा ॥१२॥ सु रत्नकार भाजकार नारसिंघ हैं पुरी । सुजंबूवाल और क्षेत्र ब्रह्म वैश्य लौंजुरी। सु आइ हैं चुरासि जाति जैनधर्मकी धनी । सवै विराजी गाठियो जु इन्द्रकी सभा बनी ॥१३॥ सुमाल लेनको अनेक भूपलोग आवहीं। सु एक एकतें सुमाग मालको बड़ावहीं ॥ कहेंजु हाथ जोरि जोरि नाथ माल दीजिये। मगाय दे हेमरत्न सो भंडार कीजिये ॥१४॥ बधेलवाल धाकड़ा हजार बीस देत हैं 1 हजार दे पचास दे परिवार फेरि लेत हैं। सुजैसवाल लाख देत माल लेत चोपलों ।जु दिल्लिवाल,