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आत्मतत्व-विचार
'प्रशस्तानि सदा कुर्यात्, अप्रशस्तानि वर्जयेत् , आदि वचनों द्वारा पाप का निषेध किया गया है।
खिस्ती, इस्लाम, जरथुस्त्र, यहूदी आदि धर्मों में भी पाप न करने के विषय मे स्पष्ट आदेश हैं। इसलिए, आदमी को पाप नहीं करना चाहिए । इस बारे मे दुनिया के सभी धर्म एकमत हैं।
पापक्रिया किसे कहे ? इस विषय में विभिन्न मत प्रचलित हैं। फिर, भी हिसा, झूठ, चोरी, व्यभिचार और अतिसग्रहवृत्ति को दुनिया के सत्र मान्य धर्म पाप-कोटि मे रखते हैं। इससे उसकी अनिष्टता या भयकरता समझी जा सकती है।
जैन-शास्त्रो में व्रत, नियम या प्रत्याख्यान की बड़ी ही प्रशंसा की गयी है । यह व्रत, नियम या प्रत्याख्यान क्या है ? पाप का विरमन, पाप का त्याग।
प्रश्न-नवकारसी का प्रत्याख्यान करने से किस पाप का त्याग होता है ?
उत्तर-नवकारसी का प्रत्याख्यान करने से अविरति का त्याग होता है । अविरति भी पाप हो है।
आप प्रत्याख्यान को प्रतिज्ञा या बाधा समझकर चलते हैं, पर उसके वास्तविक अर्थ पर कभी विचार भी किया है ? श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराज ने आवश्यकसूत्र की टीका में प्रत्याख्यान इस प्रकार किया है-"प्रत्याख्यायते निषिध्यतेऽनेन मनो-वाक-कायजालेन किश्चिदनिष्टमिति”-जिससे मन, वचन और काया के समूह द्वारा किसी भी अनिष्ट का निषेध हो सो प्रत्याख्यान है।” इस प्रत्याख्यान को ही प्राकृतभाषा में 'पञ्चक्खाण' कहा जाता है। ___व्याख्यान श्रवण का फल क्या है ?" "ज्ञान " "ज्ञान का फल क्या है ?" "विज्ञान " "विज्ञान का फल क्या है ?” "प्रत्याख्यान !" सद् गुरु के मुख से वीतराग की वाणी सुनने से ज्ञान होता है। उस ज्ञान की