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निरजरा नाद गाजै ध्यान मिरदंग वाजे,
क्यों महानन्द मैं समाधि रीझ करिकै । सत्ता रंग भूमि में मुकुत भयो तिंहु काल,
नाचे सुद्ध दृष्टि नट ज्ञान स्वांग धरिकै ॥
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अपभ्रंश और हिन्दी में जैन - रहस्यवाद
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या घट में भ्रमरूप अनादि, विलास महा अविवेक अखारो । तामह और स्वरूप न दीसत पुग्गल नृत्य करै अति भारौ ॥ फेरत भैख दिखावत कौतुक, सौंज लिए वरनादि पसारौ ।
मोह सो भिन्न जुड़ा जड़ सौ, चिन्मूरित नाटक देखन हारौ ॥'
इस प्रकार 'नाटक समयतार' एक प्राध्यात्मिक ग्रन्थ है, जिसमें जीवअजीव, कर्ना-कर्म, पाप-पुन्य, आस्रव-संवरा, निर्जरा-वंध, सम्यक्ज्ञान आदि की विवेचना की गई है। बनारसीदास ने मूलग्रन्थ का सफल अनुवाद करने के अतिरिक्त कुछ मौलिक पदों को भी जोड़ दिया है, जिससे कठिन स्थल सरल हो गए हैं ।
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(४) अर्ध कथानकं : यह कवि का आत्म-चरित-काव्य । इसमें कवि ने अपने जीवन के ५५ वर्षो का सच्चा इतिहास लिखा है । 'आत्म-चरित' के रूप में यह हिन्दी साहित्य में प्रथम प्रयास है । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कवि की सत्यनिष्ठा और रचना शैली की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। बनारसीदास चतुर्वेदी के शब्दों में सत्यप्रियता स्पष्टवादिता, निरभिमानिता और स्वाभाविकता का ऐसा जबरदस्त पुट इसमें विद्यमान है, भाषा इस पुस्तक की इतनी सरल है और साथ ही वह इतनी संक्षिप्त भी है कि साहित्य की चिरस्थायी सम्पत्ति में इसकी गणना अवश्यमेव होगी' ।
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(५) नारी विलाने
यह वनारसीदास कृत ५७ उपलब्ध रचनाओं का संग्रह है । मंग्रह आगरा निवासी जगजीवन द्वारा किया गया था । संग्रह संवत् इस प्रकार दिया गया है :
सत्रह से एकोत्तरे, समय चैत सितपाख । द्वितिया में पूरन भई, यह बनारसी भाख ।
(वन रसी विलास, पृ० २४१ )
१. नाटक समयसार की भूमिका, पृ० २-३ | श्री नाथूराम प्रेमी द्वारा हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय हीराबाग, बम्बई न० ४ से प्रकाशित ।
३. अर्थ कथानक भूमिका, पृ० २ ।
४. श्री नानूराम स्मारक ग्रन्थमाला, जयपुर से प्रकाशित ।