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तृतीय अध्याय
(e) बनारसीदास परिचय:
जैन कवियों में बनारसीदास का स्थान विशिष्ट माना जाता है। आप श्री नाथूराम प्रेमी के मत से १७वीं शताब्दी के और श्री कामता प्रसाद जैन के मत में सम्पूर्ण जैन सम्प्रदाय में सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। आप ही प्रथम रचनाकार हैं जिन्होंने 'आत्मचरित' लिख कर जहां एक ओर हिन्दी में नतन परिपाटी को जन्म दिया, वहाँ दूसरी ओर अपने जीवन और चरित्र को सच्चे रूप में लिपि बद्ध किया। 'अर्थकथानक' में आपके जीवन के ५५ वर्षों का यथार्थ वर्णन मिलता है।
पूर्वज :
'अर्धकथानक के अनुसार आपके पूर्वज मध्यभारत में रोहतकपुर के पास विहोली नामक ग्राम के रहने वाले राजपूत थे। वहाँ एक बार एक जैन मुनि का आगमन हुआ। उनके उपदेश और प्राचरण से मुग्ध होकर सभी राजपूत जैन मतावलम्बी हो गए। नवकार मन्त्र की माला पहन कर श्रीमालकूल की स्थापना की और गोत्र का नाम 'विहोलिया' रक्खा। इसी वंश में गंगाधर नामक प्रसिद्ध जैनी हुए, जिनके कुल में वनारसी दास का जन्म हुआ। इनका वंश वृक्ष इस प्रकार है :
गंगाधर
वस्तुपाल
जेठमल
जिनदास
मूलदास
घनमल
खरगसेन (जन्म सं० १६०२)
बनारसी दास ( जन्म सं० १६४३)
१. श्री कामता प्रसाद जैन-हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास,
पृ० ११२ । २. पहिरी माला मन्त्र की, पायो कुल श्रीमाल |
थाप्यौ गीत बिदौलिया, वीहोली रखपाल |॥ १०॥