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द्वितीय अध्याय
प्रमाण नहीं मिलता। 'निजात्माष्टक' प्राकृत भाषा का ग्रन्थ है । इसके रचयिता के सम्बन्ध में भी कुछ निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता ।
नौकार श्रावकाचार या सावयधम्मदोहा में जैन श्रावकों के प्राचरण सम्बन्धी नियम हैं । इसके रचयितात्रों में तीन व्यक्तियों - योगीन्दु, लक्ष्मीधर और देवसेन का नाम लिया जाता है । 'हिन्दी साहित्य के बृहत् इतिहास' में 'योगीन्दु' को 'सावयधम्मदोहा' का कर्ता बताया गया है। इस पुस्तक की 'कुछ हस्तलिखित प्रतियों के अन्त में जोगेन्द्र कृत' लिखा भी है । 'सावयधम्मदोहा ' की तीन हस्तलिखित प्रतियाँ ऐसी हैं, जिनमें कवि का नाम 'लक्ष्मीचन्द्र' दिया हुआ है। किन्तु इसका सम्पादन डा० हीरालाल जैन ने किया है और उसकी भूमिका में 'देवसेन' को ग्रन्थ का कर्ता सप्रमाण सिद्ध कर दिया है । अतएव इसमें अब सन्देह का स्थान नहीं रह गया है कि 'सावयधम्मदोहा' देवसेन की रचना है । देवतेन दसवीं शताब्दी के जैन कवि थे । उन्होंने 'दर्शनसार', 'भावसंग्रह' आदि ग्रन्थों की रचना की थी। 'दर्शनसार' के दोहा नं० ४९, ५० में आपने लिखा है कि ग्रन्थ की रचना धारा नगरी के पार्श्वनाथ मन्दिर में बैठकर सम्वत् ९९० की मात्र मुदी दशमी को की। इससे स्पष्ट है कि वे दसवीं शताब्दी में हुए थे ।
'दोह पाहुड़' के सम्बन्ध में दो रचयिताओं का नाम आता है-मुनि रामसिंह और योगीन्दु मुनि । डा० हीरालाल जैन ने इस ग्रन्थ का सम्पादन दो हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर किया है। उन्हें एक प्रति दिल्ली और दूसरी कोल्हापुर से प्राप्त हुई थी । दिल्लीवाली प्रति के अन्त में 'श्री मुनिराम सिंह विरचिता पाहुड दोहा समाप्तं' लिखा है और कोल्हापुर की प्रति के अन्त में 'इति श्री योगेन्द्रदेव विरचित दोहापाहुड नाम ग्रन्थं समाप्तं' लिखा है । 'दोहा पाहुड' की एक हस्तलिखित प्रति मुझे जयपुर के 'आमेर शास्त्र भाण्डार' गुटका नं० ५४
प्राप्त हुई है । इस प्रति के अन्त में लिखा है 'इति द्वितीय प्रसिद्ध नाम जोगीन्दु विरचितं दोहापाहुडयं समाप्तानि ।' इस कारण यह निर्णय कर सकना कि इसका कर्ता कौन है ? कुछ कठिन हो जाता है। अगले प्रकरण में इस पर विस्तार से विचार कर रहे हैं ।
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अब दो ग्रन्थ - परमात्मप्रकाश और योगसार - ही ऐसे रह जाते हैं, जिनको निर्विवाद रूप से योगीन्दु मुनि का कहा जा सकता है । परमात्मप्रकाश में दो महाधिकार हैं । प्रथम महाधिकार में १२३ तथा दूसरे में २१४ दोहे हैं । इस
१. हिन्दी साहित्य का बृहत् इतिहास ( प्रथम भाग ) सं० डा० राजबली पांडेय, पृ० ३४६ ।
२. देखिए - परमात्म प्रकाश की भूमिका, पृ० ११० ।
३. देखिए - सावयधम्मदोहा की भूमिका ( सं० डा० हीरालाल जैन, प्र० कारंजा जैन सिरीज़, कारंजा, १६३२ ) ।
४. मुनि रामसिंह - पाहुड़दोहा, सं० डा० हीरालाल जैन, प्र० कारंजा जैन पब्लिकेशन सोसाइटी, कारंजा ( बरार ) १६३३ ।