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अपभ्रंश और हिन्दी में जैन-रहस्यवाद
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प्रनि है. जो परमात्मा से प्रत्यक्ष, तात्कालिक, प्रथम स्थानीय, और अन्तर्ज्ञानीय संबंध स्थापित करती है। इन सम्बन्ध स्थापन हेतु किसी बाह्य साधन की अपेक्षा नहीं रहती। इन्द्रिय और मन के व्यापार विरत हो जाते हैं। समस्त सांसारिक वस्तुओं को माधक निरपेक्ष और तटस्थ दृष्टि से देखने लगता है। आत्मा मल
और विकार गुन्य होते हुए क्रमशः उस उच्च विन्दु तक पहुंच जाता है 'जहं मण पत्रण न मंचरई और जहं रवि ससि नाह पवेस'। उसमें वह ज्ञान पैदा हो जाता है जिससे वह सत्य और असत्य के अन्तर को स्पष्ट करने में सक्षम हो जाता है। शास्त्रीय भाषा में वह 'पराविद्या' युक्त होकर परमात्मा के गुणों से आवेष्ठित हो जाता है अथवा स्वय परमात्मा बन जाता है। वह पाप-पुण्य से परे हो जाता है, ममय की मीमा अथवा काल का बन्धन उसे जकड़ नहीं पाता। वह गुण-दोषों की विवेचना में नहीं फंसता, क्योंकि उसके लिए यह सब अवास्तविक प्रतीत होने लगते हैं। प्रसिद्ध दार्गनिक बाड रसेल ने इसी कारण 'रहस्यवाद' के चार मुलभूत आधार स्तम्भ माने हैं :
१. जान की उम शाखा की सम्भावना में विश्वास करना जिसे अन्तर्ज्ञान,
प्रातिभज्ञान या स्वसंवद्यज्ञान कहते हैं और जो ऐन्द्रियज्ञान, तर्क और
विश्लेषण से भिन्न होता है। २. एकता में विश्वास, पाप-पुण्य के द्वय का निषेध । ३. समय अथवा काल की यथार्थता का निषेध । ८. दोपों की अमत्यता में विश्वाम-यह निष्ठा कि समस्त सांसारिक गुण
दोप माया है, भ्रम हैं, दिखावा मात्र हैं।
जैनाचार्यों ने मध्यकालीन अन्य मन्तों के समान उपर्युक्त तथ्यों को स्वीकार किया है। उन्होंने बताया है कि मनुष्य केवल स्थूल वृद्धि से अथवा पुस्तकीय ज्ञान मे परमतत्व की अनुभूति नहीं कर सकता, परमात्मा नहीं बन सकता। वह व्यक्ति जो आजीवन नाना ग्रन्थों और शास्त्रों में ही चक्कर काटा करते हैं, अन्तत: अपने उद्देश्य में निकल ही रहते हैं। मूनि रामसिंह कहते हैं कि मुर्ख तुने बहत पढ़ा जिसमे कि ताल मच गई, किन्तु यदि एक अक्षर पढ़ ले, तो शिवपुर गमन हो जाय अर्थात यदि नेरे में अन्तान उत्पन्न हो जाय, यथार्थ और अयथार्थ में अन्नर करने की क्षमता धारण कर ले तो तेरा कार्य सिद्ध हो जाय :
बहुयई पढ़ियई मड़ पर तालू सुक्कइ जेण। एक्क ज अक्खर तं पढ़इ, सिवपुरि गम्मइ जेण ।।
Mysticism denotes that attitude of mind which involves a direct, immediate, tirst-han!, intuitive apprehension of God."
-R. D. Ranade, Mysticism in Maharashtra, Arya Bhushan
Press Office, Poona -2, Ist Edition, 1633. ( Preface, Page 1. ) २. Bererand Russell -Mysticism and Logic-Page 16-17.