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दोहावेहा'
लक्ष्मीचन्द
पणविवि सिद्ध महा रिसिहि, जो परभावहं मुक्कु । परमानंद परिठियउ, चउ गइ गमणहं चुक्कु ॥ १ ॥ जइ बहिउ चउ गइ गमण, तो जिणउत्तु करेहि । दो दह अणुवेहा मुहि, लहु सिव सुक्खु लहेहि ||२|| अद्ध्य असरण जिणु भणई, संसारु वि दुइ खाणि । एकत्तुवि अण्णतु मुणि, असुइ सरीरु वियाणि ॥ ३ ॥ आसव संवर णिज्जर वि, लोया भाव बिसेसु । धम्मुवि दुल्लह बोहि जिय, भावें गलइ किलेसु ॥४॥ जल बुब्वउ जीविउ चवलु, धणु जोव्वण तडि तृल्लु । इस वियाणि विमा गमहि, माणुस जम्मु प्रमुल्लु ||५|| जइ णिच्चु वि जाणियइ, तो परिहरहि अणिच्चु । तं काई णिच्चवि मुर्णाहिं, इम सुय केवलि बुत्तु ॥६॥ असर जाहिं सयलु जियु, जीवहं सरणु ण कोइ । दंसण णाण चरित्त मउ, अप्पा अप्पर जोइ ॥७॥ दंसण णाण चरित मउ, अप्पा सरणु अण्णु ण सरणु वियाणि तुंहु, जिणवरु एम तइ लोउ वि महु मरणु बहु, हउं कहु इम जाणे विणु थिरु रहइ, जो तइ पंच पयारह परिभमइ, पंचइ बंधिउ जाम ण अप्पु मुणेहि फुडु, एम भमंतिहु इक्किलउ गुणगण तिलउ, वीयउ अत्थि ण मिच्छादंसणु मोहियउ, चउगइ हिंडइ जइ संद्दसणु सो लहइ, तो परभाव इक्किल्लव सिव सुहु लहइ, जिणवर एम अणूण सरीरु मुणेहिं जिय, अप्पर केवलि अण्णु । तो अणु विसयलु वि चयहि, अप्पा अप्पर मण्णु ॥ १३॥
सरजहु जाम । लोयकु साम || ९ || सोइ ।
जोइ ॥ १०॥
कोइ । सोइ ॥ ११ ॥
चएइ । भणेइ ॥ १२ ॥
१. आमेर शास्त्र भांडार जयपुर में सुरक्षित प्रति से ।
मुणेइ । भणेइ ||८||