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परिशिष्ट
सदगुरु तुठा पावयई मुक्ति तिया घर वासू ।
सो गुरु निम्त्माइय आणंदा ! जब लगु हियडइ सासु ॥३५॥ गुरु जिणवरु गुरु सिद्ध सिउ, गुरु रयणत्तय सारु ।
सो दरिमावइ अप्प परु आणंदा! भव जल पावइ पारु ॥३६॥ कुगुरुह पूजिम सिर घुणहु तीरथ काइ भमेहु।।
देउ सचेयणु संघ गुरु आणंदा ! जो दरिसावहि भेव ॥३७॥ पढइ पढ़ावइ आचरइ सो णरु सिवपुर जाई।
कम्मह ण भवणि दलण्णि आणंदा ! भवियण हियइ समाई ॥३८॥ सुणतहं आणंद उल्लसई मस्तकि णाण तिलक ।
मुक दुमणि सि सोहवई आणंदा ! साहु गुरु पालाहु जोगु ॥३९॥ समरस भावें रंगिया अप्पा देखइ सोई।
अप्पउ जाणइ पर हणई आणंदा ! करई णिरालंब होई ॥३०॥ सुणतह हियडइ कलमलई मस्तकि उपज्जइ मूल।
अणख बढावइ बहु हियइ आणंदा ! मिठा दिट्टी जोगु । ४१॥ हिंदोला छंदि गाइयई आणंदि तिलकु जिणाउ।
महाणंदि दश्वालियउ आणंदा! अवहउ सिवपुरि जाई॥४२॥ बलि काजउ गुरु आपणइ, फेडी मनह भरांति।।
बिण तेलहिं बिण बातियहिं पाणंदा! जिणदरिसावयउ भेव ॥४३॥ दसद गुरु चारणि जउ हउ, भणइ महा आणंदि।
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॥ इति आणंदा समाप्त ॥