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अपभ्रंश और हिन्दी में जैन-रहस्यवाद
भी श्रेष्ठ माना जाता था, उसी प्रकार इस सम्प्रदाय में निरंजन को सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित किया गया। प्राचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का अनुमान है कि 'उड़ीसा के उत्तरी भाग, छोटा नागपुर को घेरकर रीवा से पश्चिमी बंगाल तक के क्षेत्र में धर्म या निरंजन की पूजा प्रचलित थी।' ऐसा अनुमान किया गया है कि यह निरंजन मत बौद्ध धर्म का ही एक विकसित रूप या उसी की एक प्रच्छन्न या विस्मृत शाखा थी। इस सम्प्रदाय के ग्रन्थों में निरंजन की स्तुति अनादि और अनन्त तत्व के रूप में की गई है। एक स्तोत्र के अनुसार 'निरंजन का न कोई रूप है न रेखा, न धातु है न वर्ण, न वह श्वेत है न पीत, न रक्त वर्ण है न अन्य रंग का, उसका न कभी उदय हा है, न वह कभी अस्त होता है, वह न वक्ष है न मुल, न बीज है न अंकूर, न शाखा है न पत्र, न पुष्प है न गन्ध, न फल है न छाया, वह न नारी है न पुरुष, उसके न हाथ हैं न पैर, न रूप है न छाया, वह न ब्रह्मा है न इन्द्र, न विष्णु है न रुद्र, न ग्रह है न तारा, न वेद है न शास्त्र, न संध्या है न स्तोत्र और न होम है न दान। वह इन सभी से परे निराकार, निर्विकार, निर्गुण, अज और अरूप तत्व है। इस प्रकार इस मत में 'निरंजन' को इस जगत की समस्त उपाधियों से परे बताया गया तथा अन्य सभी देवताओं को इससे नीची कोटि में गिना गया।
किन्तु आगे चल कर इसका उक्त कल्पित स्वरूप स्थिर न रह सका। ऐसा प्रतीत होता है कि पन्द्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी में इस सम्प्रदाय ने कबीर पंथ में एक शाखा के रूप में अन्तर्भुक्त होने की चेष्टा की। यहीं से कबीर पंथ की अन्य शाखाओं से उसका संहर्ष प्रारम्भ हो गया और 'निरंजन' के सम्बन्ध में विविध प्रकार की कथाएँ और किंवदंतियाँ गढ़ी जाने लगीं। किसी कथा में उसे काल पुरुष बताया गया तो किसी में शैतान, किसी में उसे अनन्य शक्ति से युक्त सिद्ध किया गया, तो किसी में पाषण्डी और महाठग, यदि किसी ने उसे साधक को भ्रष्ट करने वाला बाधक-तत्व बताया तो अन्य ने उसे पूरे विश्व को भ्रम में डाल रखने वाला।
_ 'कबीर मंसूर' की एक कथा के अनुसार सत्य पुरुष समस्त जगत का उत्पन्न कर्ता है। वह कभी गर्भ में नहीं आता। कबीर उसी के अवतार हैं। इस सत्य पुरुष ने सृष्टि के लिए छह पुत्रों को पैदा किया। इसके पश्चात् एक सातवीं सन्तान कालपुरुष निरंजन को उत्पन्न किया। इसी निरंजन ने इस संसार का निर्माण किया है। इस सृष्टि के निर्माण करने के मसाले को एक कर्म जी छिपाए हुए थे। निरंजन ने उन्हें युद्ध में पछाड़ कर मसाला छीना था। कालपुरुष निरंजन ने पहले माया को उत्पन्न किया, फिर माया के संयोग से ब्रह्मा, विष्णु और महेश की सृष्टि की। इसके पश्चात् वह अज्ञात १, मध्यकालीन धर्म साधना, पृ० ७८ ।
.., पृ० ७६। ३. देखिए-आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी-कवीर, पृ० ५४ से ५६ तक ।