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पंचम खण्ड
एकादश अध्याय
मध्यकालीन धर्म साधना में प्रयुक्त कतिपय शब्दों का इतिहास
सहज
मध्यकालीन साहित्य के अध्ययन से एक बड़े ही मनोरंजक और साथ ही महत्वपूर्ण इस तथ्य का पता चलता है कि कुछ शब्द ऐसे हैं, जिनका प्रयोग लगभग सभी साधना मार्गों में हुआ है और प्रत्येक साधना के साथ जुड़कर उस शब्द ने किसी अन्य विशिष्ट अर्थ को भी ग्रहण कर लिया है। निरंजन, सहज, शून्य, महासुख, समरस, खसम, अवधू आदि ऐसे ही शब्द हैं। इनका इतिहास मनोरंजक तो है ही, साथ ही मध्यकालीन धर्मसाधना की पूरी विशेषताओं को भी प्रकट करता है । 'सहज' शब्द इनमें सर्वाधिक व्यापक है । इसका प्रयोग अनेक अर्थों में, अनेक सम्प्रदायों में और अनेक शताब्दियों में हुआ है । अतएव इसकी कहानी भी लम्बी है ।
सहज की परम्परा :
सामान्यतः 'सहज' का अर्थ है - स्वाभाविक । और इस अर्थ में 'सहज' शब्द का प्रयोग बहुत प्राचीन काल से होता रहा है । किन्तु 'सहजायते इति सहज:' के अनुसार सहज का अर्थ 'जन्म के साथ-साथ उत्पन्न होने वाला या