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दशम अध्याय
जैन काव्य और हिन्दी संत काव्य
संत कवि :
हिन्दी संत कवियों से तात्पर्य उन 'निर्गुनियाँ' साधकों से है, जो समस्त बाह्याडम्बरों का विरोध करते हुए आत्म-शुद्धि के लिए प्रयत्नशील थे, जिनकी दृष्टि में ईश्वर एक, अनन्य और सर्वव्यापक था, जिनके लिए गुरु गोविन्द से भी बड़ा था और जिनकी दृष्टि में भक्ति के क्षेत्र में ऊँच-नोच या छूत-अछूत का कोई अर्थ नहीं था । वैसे हिन्दी में यह संत परम्परा कबीर के पहले से ही प्रारम्भ हो चुकी थी, 'श्री गुरु ग्रन्थ साहब' में उल्लिखित संतों में से कई कबीर के पूर्ववर्ती थे, लेकिन कबीर इस शाखा के सर्वाधिक लोकप्रिय और गरिमा सम्पन्न व्यक्तित्व वाले साधक हैं । उनका प्रभाव भी बड़ा व्यापक पड़ा । परिणामस्वरूप यह संत काव्य धारा कई शतियों तक प्रवहमान रही ।
संत कवि और पूर्ववर्ती साधना मार्ग :
इन संतों, विशेष रूप से कबीर का अध्ययन करते समय, इन्हें अनेक पूर्ववर्ती साधना मार्गों से प्रभावित बताया गया है । उपनिषद्, सिद्ध साहित्य, नाथ साहित्य, सूफी सम्प्रदाय आदि में से एक या अनेक इन सन्तों के प्रेरणा स्रोत माने गए हैं। एक आलोचक के अनुसार कबीर श्रुति पंथ, वैष्णव मत, रामानन्द, बौद्ध धर्म, वज्रयानी और सहजयानी, निरंजन पंथ, तन्त्र-मन्त्र, नाथ सम्प्रदाय,