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नवम अध्याय
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है तिब्बती परम्परा के चौरासी सिद्धों से इनमें के कई सिद्ध अभिन्न हैं, उभय साधारण है। ऐसी स्थिति में राहुल जी द्वारा उक्त सूची के आधार पर, व्यक्त मत सन्देह को जन्म दे सकता है ।
एक बात और है। यद्यपि यह सम्प्रदाय नाथ सम्प्रदाय' के नाम से विख्यात हुआ, तथापि इस सम्प्राय के ग्रन्थों में इसके अन्य नाम जैसे सिद्ध मत, सिद्धमार्ग, योग-मार्ग, अवधूत-सम्प्रदाय आदि भी मिलते यानी और नाथ दोनों अपने को 'सिद्ध' कहते थे. दोनों को साधना पद्धति में बहुत कुछ साम्य भी था। अनएव बहुन सम्भव है इसी कारण दोनों मागों के सिद्धों की सूचियों में कुछ नाम साम्य हो गया हो।
हैं।
यह पहले ही कहा जा चुका है कि
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धर्म साधनाएँ एक दूसरे के बहुत निकट भी कभी एक सम्प्रदाय दूसरे में अन्तर्भुक्त हो जाता था और कभी एक शाखा से दूसरो प्रणाम जन्म ले ली थी। इस प्रकार सम्प्रदायों का उद्भव और विलयन उस समय की मामान्य विशेषता थी। नाथ सम्प्रदाय के साथ भी ऐसा ही हुमा होगा इसका सम्बन्ध भी अनेक मतों के साथ बताया जाता है। कहा जाता है कि कॉल मार्ग और कापालिक मत नाथ मतानुयायी ही हैं । नाथ सम्प्रदाय के प्रवर्तक आदि नाथ' को साक्षात् 'शिव' भी माना जाता है। इसलिए 'शैवों' से इसका घनिष्ठ सम्बन्ध हो ही गया। इसी प्रकार तांत्रिकों पर भी इसका प्रभाव बताया जाता है और शंकराचार्य के इस सम्प्रदाय में दीक्षित होने की बात भी कही जाती है। इससे नाथ सम्प्रदाय के प्रभाव और महत्व का पता चल जाता है ।
नाथ सिद्ध और उनका समय :
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'राज गुह्य' नामक ग्रन्थ में कहा गया है कि 'ना' का अर्थ है 'अनादि रूप' और 'थ' का अर्थ है 'भुवनत्रय का स्थापित होना' । इस प्रकार 'नाथ' मत का अर्थ है 'वह अनादि धर्म जो भुवनत्रय की स्थिति का कारण है । श्री गोरखनाथ को इसीलिए 'नाथ' कहा जाता है ।। नाथ सिद्धों की संख्या और समय के सम्बन्ध में काफी मतभेद है। इस मतभेद का कारण है किसी ऐतिहासिक प्रमाण का अभाव और किंवदन्तियों एवं कथाओं का विशाल जाल । जिस प्रकार सिद्धों के साथ 'चौरासी' शब्द अभिन्न रूप से गुंथा है, उसी प्रकार 'नाम' शब्द कहते हो 'नौ' स्वतः जिह्वा पर भा जाता है। किन्तु ये नौ नाथ
१. नाथ सम्प्रदाय, पृ० २७-२८ ।
२. विस्तार के लिए देखिए नाथ सम्प्रदाय, पृष्ट २ से १४ तक
स्थाप्यते सदा । नमोऽस्तुते ॥
(नाथ सम्प्रदाय, पु०३ से उद्धृत )
३. नाकारोऽनादि रूपं थकारः
भुवनत्रयमेवैका भी गोरक्ष