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अपभ्रंश और हिन्दी में जैन-रहस्यवाद योगसूत्रों की रचना की थी। इससे योग परम्परा की प्राचीनता और अखंडता स्पष्ट हो जाती है।
मध्यकाल में इस साधना प्रणाली को नाथ योगियों द्वारा काफी प्रोत्साहन मिला। उन्होंने योग शास्त्र के सैद्धान्तिक पक्ष को व्यावहारिक रूप दिया और संस्कृत में लिपिबद्ध विचारों को 'भाषा' द्वारा जनता तक पहुंचाया। उन्होंने 'कथनी' की अपेक्षा 'करनी' पर विशेष जोर दिया, इसलिए उसका इतना व्यापक प्रभाव पड़ा कि उनके समकालीन अन्य सन्तों और मुनियों ने तो उनकी पद्धति और शब्दावली को अपनाया ही, परवर्ती सन्त भी उसी ओर आकृष्ट हुए और योग की यह परम्परा आधुनिक काल तक चलती रही।
नाथ सम्प्रदाय और सहजयानी सिद्धों से उसका सम्बन्ध :
'नाथ' सम्प्रदाय का आदि प्रवर्तक कौन था और 'नाथ' कितने हुए तथा उनके नाम क्या हैं ? इसका निर्णय करना बड़ा कठिन है। वस्तुतः मध्यकालीन धर्मसाधनाएं एक दूसरे से इतना प्रभावित है और एक दूसरे की शब्दावली आदि को इस मात्रा में ग्रहण कर लिया है कि किसी भी साधना पद्धति के यथार्थ स्वरूप का सम्यक् विवेचन लगभग असम्भव कार्य हो गया है। नाथ सिद्धों की प्राप्त सूचियों में इतनी विभिन्नता और नामान्तर है तथा सहजयानी सिद्धों की सूचियों के अनेक नामों से ऐसी अभिन्नता है कि यह बता सकना भी कठिन है कि नौ नाथ कौन थे ? या नाथों की निश्चित संख्या कितनी थी? तथा नाथ योगियों और सहजयानी सिद्धों में क्या सम्बन्ध था ? दोनों सम्प्रदायों की सूचियों में अनेक नाम समान तो हैं ही, इसके अतिरिक्ति नाथ सम्प्रदाय के प्रवर्तक 'आदिनाथ' को कुछ विद्वान् 'जालंधरपाद' मानते हैं और इस आधार पर नाथ सम्प्रदाय को 'चौरासी सिद्धों' से निकला हुआ मानते हैं। श्री राहुल जी ने लिखा है कि 'नाथ पंथ चौरासी सिद्धों से ही निकला है। 'गोरक्ष सिद्धान्त संग्रह में 'चतुरशीति' शब्द के साथ निम्न सिद्धों का नाम मार्ग-प्रवर्तक के तौर पर लिखा गया है-नागार्जुन, गोरक्ष, चर्पट, कन्थाधारी, जालन्धर, आदिनाथ (जालन्धरपाद) चर्या (कण्हपा) । इससे चौरासी सिद्धों और नाथ पन्थ के सम्बन्ध में सन्देह की कोई गुंजायश नहीं रह जाती।" लेकिन जैसा कि हम अभी कह आए हैं कि दोनों सम्प्रदायों के सिद्धों की प्राप्त सूची में अनेक नाम इस प्रकार से घूम फिरकर आए हैं कि किसी प्रकार के निश्चित निष्कर्ष पर पहंचना बड़े साहस का कार्य है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने 'नाथ सम्प्रदाय' में 'नौ नाथों' की भिन्न-भिन्न सूचियाँ दी हैं, इनमें भी कई सहजयानी सिद्धों के नाम आए हैं। यही नहीं एशियाटिक सोसाइटी की लाइब्रेरी में सुरक्षित 'वर्णरत्नाकर' नामक हस्तलेख में चौरासी नाथ सिद्धों की जो तालिका दी हुई
१. पुरातत्व निबंधावली, पृ० १६२ । २. नाथ सम्प्रदाय, पृ० २५-२६ ।