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अपभ्रंश और हिन्दी में जैन - रहस्यवाद
एक शाखा था अथवा उसका विकास स्वतन्त्र रूप में हुआ, इस पर भी विवाद है |
सिद्ध साहित्य और जैन काव्य :
विक्रम की सातवीं-आठवीं शताब्दी से भारतीय साहित्य और धर्म साधना में एक नया मोड़ आता है । भाषा संश्लिष्टावस्था को छोड़कर अश्लिष्टावस्था को प्राप्त होती है । नई भाषा के उदय के साथ ही साथ नई छंद योजना तथा नई विचार पद्धति का भी आरम्भ और विकास होता है । जिस प्रकार संस्कृत में 'अनुष्टुप छंद लोकप्रिय था, प्राकृत में जैसे गाथा का प्रचलन था, उसी प्रकार अपभ्रंश में दूहा या दोहा को प्राथमिकता मिलती है । इस समय से प्रत्येक धर्म साधना में सुधार और सरलता की प्रवृत्ति आती है । बाह्याचार और शास्त्र ज्ञान की अपेक्षा चित्त शुद्धि और अर्न्तज्ञान पर जोर दिया जाने लगता है और तीर्थ भ्रमण की अपेक्षा काया तीर्थ को महत्व मिलता है। जैन, बौद्ध, शैव, आदि सभी धर्मावलम्बी लगभग समान शब्दों में एक ही प्रकार की बात कहने लगते हैं । मध्यकालीन धर्म साधना में यह साम्य प्रद्भुत और इतिहास में अनुपम है ।
आठवीं शती के सिद्ध सरहपाद ने सरल या सहज जीवन पर जोर दिया और समस्त बाह्य अनुष्ठानों एवं षट्दर्शनों का विरोध किया। जैन कवि योगीन्दु मुनि सरहपाद के ही समवर्ती थे। दोनों के विचारों में अद्भुत साम्य है । दोनों ने सहज जीवन पर जोर दिया है, चित्त शुद्धि साधक का प्रथम कर्तव्य बताया है, गुरु की कृपा की कामना की है, पुस्तकीय ज्ञान से ब्रह्मानुभूति में संदेह व्यक्त किया है, शरीर को ही समस्त साधनाओं का केन्द्र और सर्वोत्तम तीर्थ घोषित किया है, आत्मा और परमात्मा की एकता में विश्वास व्यक्त किया है, सामरस्य भाव तथा महासुख की चर्चा की है और पाप पुण्य दोनों को हीन अथच त्याज्य कहा है । इनके पश्चात् लगभग दसवीं शताब्दी में जैन कवि मुनि रामसिंह हुए। इनके दोहों में और अधिक उदार विचार देखे जा सकते है । इन्होंने सिद्ध साहित्य तथा नाथ सम्प्रदाय के अनेक शब्दों को ज्यों का त्यों ग्रहण कर लिया और योगीन्दु मुनि की विचार सरणि को और आगे बढ़ाया । मुनि रामसिंह के अनेक दोहे सरहपाद तथा अन्य सिद्धों के दोहों से अद्भुत साम्य रखते हैं ।
सिद्ध सरहपाद ने ब्राह्मण, पाशुपत, बौद्ध, जैन आदि सम्प्रदायों के पाषंड की निन्दा की है । जैनों के बाह्याचार की खिल्ली उड़ाते हुए उन्होंने कहा कि यदि नग्न रहने से ही मोक्ष मिल जाय तो श्वान और शृगाल को मिल जाना चाहिए, लुचन क्रिया से यदि मोक्ष मिलता हो तो युवती का नितंब इसका प्रथम अधिकारी है, पिच्छीधारण ही यदि मोक्ष का कारण हो तो मयूर निश्चित रूप से मोक्ष को प्राप्त होता होगा, यदि रूखे-सूखे भोजन से ही मोक्ष सम्भव है तो