________________
अपभ्रंश और हिन्दी में जैन - रहस्यवाद
एक रूपक के द्वारा स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि काया रूपी नगरी में जीव रूपी सम्राट् शासन करता हुआ, माया रूपी रानी में आसक्त हो गया है, मोह उसका फौजदार है, क्रोध कोटपाल है, लोभ वजीर है और मान अदालत है ऐसी राजधानी और सभासदों से घिरा हुआ वह आत्मस्वरूप को भूल गया है ।' अतएव आत्मा के स्वरूप की जानकारी हेतु, आत्मा और शरीर के अन्तर को समझ लेना आवश्यक है ।
आत्मा और शरीर में अन्तरः
आत्मा और शरीर दो भिन्न तत्व हैं । आत्मा या जीव द्रव्य अरूप है, अलख है, अज है । शरीर पौद्गलिक गुणों से युक्त है, मांस, मज्जा, अस्थि, रक्त आदि से निर्मित है । अतएव वह नाशवान है, गंधयुक्त है, सुख-दुःख का कारण है । आत्मा और शरीर में वही अन्तर है, जो शरीर और वस्त्र में I जिस प्रकार वस्त्र, शरीर नहीं हो सकता, उसी प्रकार शरीर, आत्मा नहीं हो सकता, जिस प्रकार वस्त्र के विनाश से शरीर का नाश सम्भव नहीं, उसी प्रकार शरीर के नष्ट होने पर आत्मा नष्ट नहीं होता । श्री योगीन्दु मुनि कहते हैं कि जिस प्रकार कोई बुद्धिमान पुरुष लाल वस्त्र से शरीर को लाल नहीं मानता, उसी तरह वीतराग निर्विकल्प स्वसंवेदन ज्ञानी शरीर के लाल होने से आत्मा को लाल नहीं मानता, जिस प्रकार वस्त्रों के जीर्ण होने पर शरीर को जीर्ण नहीं माना जाता, उसी तरह ज्ञानी शरीर के जीर्ण होने पर आत्मा को जीर्ण नहीं मानते। जिस प्रकार वस्त्रनाश से शरीर का नाश नहीं होता, उसी प्रकार शरीर नाश से आत्मा का नाश नहीं होता, जिस प्रकार वस्त्र देह से सर्वथा भिन्न है, उसी प्रकार देह को आत्मा से सर्वथा भिन्न समझो :
१५०
रक्तें वत्थे जेम वुहु देहु ण मण्णइ रत्तु । देहि रचिणाणि तह अप्पु ण मणूणइ रत्तु ॥१७८॥ जणि वथि जेम बुह, देहु ण मरणइ जिरण्गु । देहिं जिण पाणि तह अप्पु ण मरणइ जिगु ॥ १७६ ॥
१. काया सी जु नगरी में चिदानन्द राजकरै,
मया सीजु रानी पै मगन बहु भयो है । मोह सो है फौजदार क्रोध सो है कोतवार,
लोभ सो वजीर जहाँ लूटबे को रह्यो है ॥ उदै को जुकाजी माने, मान को अदल जानै,
कामसेवा कानवीस श्राइ वाको कयौ है । ऐसी राजधानी में अपने गुण भूलि गयो, सुधि जब श्रई तबै
ज्ञान श्राइ गयौ है ||२६| (ब्रह्मविलास, शतश्रष्ठोत्तरी, पृ० १४ )