________________
तृतीय अध्याय
(१३) अानन्दवन
परिचय :
कबीर के समान फक्कड़ साधकों में 'आनन्दघन' का स्थान विगिप्ट है। आपका परिचय और व्यक्तित्व भी अनेक सन्नों के समान कुज्झटिकाछन्न एवं किम्बदन्तियों का आगार बन गया है। प्रारम्भ में जैन मर्मी आनन्दघन, शृङ्गारकाल के रीति मुक्त, स्वच्छन्द प्रेमी कवि घनानन्द और कोकसार के रचयिता कवि आनन्द को एक ही व्यक्ति समझा जाता था। शिवसिंह सगेज के आधार पर सर जार्ज ग्रियर्गन ने एक ही 'आनन्दघन' के अस्तित्व को स्वीकार किया था। मित्र बन्धुओं ने अपने 'विनोद' में अवश्य घनानन्द को आनन्दघन से भिन्न माना है। उन्होंने जैन आनन्दघन' के सम्बन्ध में यह विवरण दिया है:-.
नाम-(३४४॥ १) आनन्दघन ग्रन्थ-(१) आनन्दधन बहत्तरीस्तवावली रचनाकाल-१७०५
विवरण-यशोविजय के समसामयिक थे। प्रमो घनानन्द और उनकी रचनाओं पर आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने विस्तार से विचार किया है और उनके जीवन सम्बन्धी घटनाओं का अच्छा विश्लेषण किया है, किन्तु 'आनन्दघन' की प्रामाणिक जीवनी का कोई आधार अभी लक उपलब्ध नहीं हो सका है। जैन साहित्य के प्रमुख उद्धारक और अन्वेषक श्री नाथराम प्रेमी ने 'आनन्दघन' के सम्बन्ध में केवल इतना ही लिग्वा है कि श्वेताम्बर सम्प्रदाय में एक प्रसिद्ध महात्मा हो गये हैं। उपाध्याय यगाविजय जी से सुनते हैं इनका एक बार साक्षात्कार हया था। यशोविजय जी न आनन्दघन जी की स्तुति रूप एक अप्टक बनाया है। अत: इन्हें यशोविजय जी के समय में हआ समझना चाहिए। यशोविजय और आनन्दघन के साहचर्य का उल्नेख श्री क्षितिमोहन सेन ने भी किया है। जैन मर्मी आनन्दघन पर विचार करते हुए आपने लिखा है कि 'मेड़ता नगर में प्रानन्दघन के साथ यगोविजय ने कुछ समय बिताया था। इसलिए ये दोनों ही समसामयिक थे।
१. डा० मर जार्ज अब्राहम ग्रियर्मन कृत 'द माडर्न बर्नाक्यूलर लिटरेचर श्राफ
हिन्दुस्तान, का किशोर लाल गुप्त द्वरा सटिप्पण अनुवाद, पृ० २०४ । २. मिश्रबन्धु विनोद (द्वितीय भाग ) पृ० ४२८ । ३. श्री न थूगम प्रेमी-हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, पृ. ६१ । ४. देखिए-वीणा (मासिक पत्रिका) वर्ष १२, अंक १, मं० १६६५
(नवम्बर सन् १६३८) इन्दौर के अन्तर्गत श्राचार्य श्री भितिगोहन सेन का लेख 'जैन मरमी आनन्दघन का काव्य' पृ०८।