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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 103 छोडकर केश कर्तन करवाये और दो लाख स्वर्णमुद्राएँ से पातरे एव रजोहरण कुत्रिकापण से मगवाया। नापित द्वारा काटे गये केशो को मॉ धारिणी ने श्वेत वस्त्र मे रखा कि जब-जब घर मे उत्सवादि होगे तो मेघकुमार के इन केशो को देखकर उनका स्मरण कर सकूँगी। तत्पश्चात् एक हजार पुरुषो द्वारा वहन करने योग्य शिविका तैयार करवाई और मेघकुमार को वस्त्रालकारो से विभूषित कर पालकी मे बिठाया। एक हजार पुरुष उस शिविका का वहन करने लगे। उस शिविका के आगे आठ मगलLA चले-1 स्वस्तिक, 2 श्रीवत्स, 3 नदावर्त, 4 वर्धमान, 5 भ्रदासन, 6 कलश, 7 मत्स्य और 8 दर्पण । इस पर जय-घोषो के नारो से मही गुजित करते हुए मेघकुमार की पालकी गुणशील चैत्य तक पहुंची। वहाँ पालकी से नीचे उतर कर मेघकुमार, जहाँ श्रमण भगवान् महावीर थे, वहाँ आया। तब उसके माता-पिता भगवान महावीर से कहते है-भगवन हमारा यह इकलौता पुत्र हमे अत्यन्त प्रिय है। हम इसके नाम-श्रवण के लिए लालायित रहते हैं। यह हमारे हृदय को आनन्द देने वाला है। यह जन्म-मरण के भय से उद्विग्न होकर आपश्री के चरणो मे प्रव्रजित होना चाहता है। हम इसे शिष्य-भिक्षा के रूप मे श्रीचरणो मे समर्पित कर रहे हैं। आप इस शिष्य को अगीकार कीजिए। प्रभु महावीर ने माता-पिता की इस बात को सम्यक्तया स्वीकार किया। तत्पश्चात् मेघकुमार ईशान कोण मे गया और वहाँ जाकर उसने आभूषण, माला, अलकार आदि उतारे। मॉ ने धवल वस्त्र मे आभूषणादि ग्रहण किये, तदनन्तर विलाप करती हुई, करुण क्रन्दन करती हुई, अश्रु टपकाती हुई मेघकुमार से कहती है-चारित्र का उत्तम भावो से पालन करना। सयम-साधना मे आलस्य मत करना, भविष्य मे हमारे लिए भी सयम प्राप्त करने का सुयोग होवे, ऐसा सहयोग देना। इस प्रकार शिक्षा देकर माता-पिता लौट जाते है। मेघकमार ने पचमुष्टि लोच किया, तत्पश्चात् प्रभु महावीर के समीप आया, उन्हें विधिवत् वदन-नमस्कार किया और प्रभु से निवेदन किया-भते । मुझे ससार की आग से निकालकर सयम के उपवन का मार्ग बताये। मुझे आप प्रव्रजित करे। भगवान ने मेघकमार को प्रव्रजित कर सयम मार्गLINI पर समारूढ किया। दिन सयम-साधना मे विनय पूर्वक'57 व्यतीत हुआ। व्यतीत हो रात्रि मे शयन का समय आया और क्रमश सबके सस्तारक बिछने लगे। दीक्षा पर्याय के क्रमानुसार मेघकुमार का सस्तारक (विछौना) द्वार के पास लगाया गया। (क) कुत्रिकापण-ऐसी देवाधिष्ठित दुकान जहाँ स्वर्ग, मृत्यलोक एव पाताल में रहने वाली वस्तु मिल सके।
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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