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86 : अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय कई बार सयमी अणगार भी अनाथ बना रहता है। इसका यह कारण है कि अत्यन्त कायर व्यक्ति सयम लेने के पश्चात् भी दुख का अनुभव करता है। प्रमाद का आश्रय लेकर महाव्रतो का सम्यक् परिपालन नहीं कर पाता। स्वय की आत्मा का निग्रह नहीं करने से रसो मे आसक्त रहकर राग-द्वेष का समूल उच्छेद नहीं कर सकता। ऐसा कायर व्यक्ति सयम लेकर भी साधु द्वारा आचरित पाँच समिति और तीन गुप्ति का सावधानी से पालन नहीं करता, अतएव वह वीरो द्वारा आचरित सयम मार्ग पर सही रीति से अनुगमन नहीं कर सकता।
वह कायर व्यक्ति अहिसादि महाव्रतो मे अस्थिर, तप और नियम से परिभ्रष्ट, चिरकाल तक लुचनादि परीषहो से आत्मा को परितापित करके भी भव-पारगामी नहीं होता |137 वह कायर व्यक्ति खाली मट्ठी की तरह निस्सार, खोटे सिक्के के तरह अप्रमाणित एव वैडूर्यमणि की तरह चमकने वाली कॉचमणि की तरह मूल्य रहित होता है।
जो साध्वाचार विहीन कुशीलों का वेश एव मुनियो का चिह्न रजोहरण आदि धारण करके अपनी जीविका चलाता है, असयमी होने पर भी स्वय को सयमी कहता है, वह चिरकाल तक विनाश को प्राप्त होता है।
राजन् ! जैसे पीया हुआ कालकूट विष, विपरीत पकडा हुआ शस्त्र और अनियत्रित वेताल स्वय का विनाशक होता है, वैसे ही विषय-विकारो से युक्त मुनि भी धर्म का विनाशक होता है। यह उसकी अनाथता है।133
जो मुनि लक्षण-शास्त्रप, स्वप्न-शास्त्र' और निमित्त-शास्त्र का प्रयोगकर्ता, कौतुक कार्यो मे समासक्त, बाजीगर आदि तमाशो से कर्मबध रूप जीविका करता है, वह इस कर्मफल भोग के समय किसी की शरण को प्राप्त नहीं करता, यह उसकी अनाथता है ।139
_शीलविहीन द्रव्य अणगार अपने घोरातिघोर अज्ञान के कारण दुखी बनकर विपरीत दृष्टिवाला बनता है। फलत वह मनिधर्म की विराधना करके नरक-तिर्यंच योनि मे सतत आवागमन करता है, यह उसकी अनाथता है।
उस पापात्मा साधु की आत्मा इतना घोर अनर्थ करती है, जितना घोर अनर्थ गला काटने वाला शत्रु भी नहीं करता, क्योकि गला काटने वाला वधक एक जीवन का घात करता है जबकि दुष्प्रवृत्तिशील साधु की आत्मा जन्म-जन्मान्तर
(क) कुशील-कुत्सित आचार वाला (ख) लक्षण-शास्त्र-शुभाशुभलक्षण जानने का शास्त्र, अष्टांग निमित्त में से एक (ग) स्वप्न शास्त्र-स्वप्न के शुभाशुभ परिणाम बतलाने वाले एक शास्त्र, 29 पाप सूत्रों में से एक (घ) निमित्त शास्त्र-भावी मुख-दुख आदि का कथन करने वाला शास्त्र