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________________ र . - अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 59 ना से असह्य पीडा हो रही है। देव ने पूछा-तुमने बत्तीस गुटिकाएँ एक साथ क्यो ना खाई? खैर | भवितव्यता बलवान है, अब तो एक साथ बत्तीस पुत्रो का जन्म हर होगा । असहनीय प्रसव पीडा होगी। एक कार्य करता हूँ कि मै तुम्हारी गर्भजन्य न पीडा को हरण किए लेता हूँ, लेकिन तुम्हे एक साथ बत्तीस पुत्रो को तो जन्म हर देना ही होगा। ऐसा कहकर देव ने पीडा का सहरण कर लिया और देव अतर्धान न हो गया। सुलसा सुखपूर्वक गर्भ का वहन करने लगी और समय आने पर - उसने बत्तीस पुत्रो को एक साथ जन्म दिया। बत्तीस कुमार घर मे धाय मॉ के द्वारा पालन-पोषण किए जाते हुए एक साथ बड़े होने लगे 123 उनकी उम्र राजा न श्रेणिक के बराबर थी और समय आने पर वे सभी अपनी योग्यता से श्रेणिक के अगरक्षक बन गए। प्रज्ञा परीक्षण : नन्दा परिणय : इधर राजकुमार श्रेणिक भी अपने गुणो की शोभा से निरन्तर सभी का मन मोहने लगे। एक समय राजा प्रसेनजित ने श्रेणिक की योग्यता के मद्देनजर विचार किया कि अब मुझे परीक्षा करनी चाहिए कि मेरे किस पुत्र मे राज्य सँभालने की कितनी योग्यता है। तब एक दिन उसने सब पुत्रो को एक साथ बिठाकर खीर का थाल परोस कर उनके सामने रखा। जैसे ही कुमार भोजन करने लगे, राजा प्रसेनजित ने शिकारी कुत्ते छोड दिए । उनको देखकर अन्य सभी राजकुमार उठकर चल दिए, परन्तु बुद्धिनिधान श्रेणिककुमार एकाकी ही बैठा रहा। उसने अपनी पैनी प्रज्ञा से हल निकाल लिया। दूसरी थाली मे थोडी-थोडी खीर वह उन कुत्तो को डालता रहा। जब वे कुत्ते उस खीर को चाटते तो श्रेणिक अपनी थाली मे खीर खाने लगता । उसे देखकर राजा अत्यन्त प्रसन्न हआ और उसने चितन किया कि यह श्रेणिककमार ही राज्य का भार वहन करने के योग्य है। समय अपनी गति से चलता रहा। एक दिन राजा प्रसेनजित के मन में पुन राजकुमारो की परीक्षा लेने का विचार प्रादुर्भूत हुआ। तब राजा ने सव कुमारो को एकत्रित करके मोदक के भरे हुए बद करडक ओर पानी के भरे हुए घडे दिए और राजकुमारो से कहा-इन करडक व घडो को खोले विना तुम्हे पानी पीना हे व लड्डू खाना हे। उस समय श्रेणिक के अतिरिक्त कोई भी राजकुमार उनको खोले विना लड्डू खाने या पानी पीने में समर्थ नहीं बना । तव . (क) प्रादुर्भूत-पेक्षा
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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