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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 55 धिक्कार है मुझे धिक्कार है . यद्यपि मेरी उत्कृष्ट भावना थी कि आप मेरे यहाँ पारणा करे, लेकिन अन्तराय घोर अन्तराय। मै आपको एक पारणा भी न करा सका। कैसा हतभागी कि मेरे कारण तीन माह निराहार रहना पडेगा। ओह अब क्या करूँ क्या करूँ । राजा सुमगल का हार्दिक पश्चात्ताप देखकर सेनक तपस्वी का हृदय मोम की तरह पिघलने लगा। उसके मन मे करुणा का सागर लहराने लगा। राजा की भावना ने उसे सोचने को मजबूर बना दिया और सरल हृदय से उसने धरणीधर से कहा-राजन ! अब भी समय है। इस बार पारणा आपके यहॉ कर सकता हूँ। राजा बडा एहसान मानता है और कहता है- आपका अनुग्रह जीवनपर्यन्त नहीं भूल पाऊँगा। तपस्वी की सरलता को दिल मे स्थान देकर नृपति वहाँ से चल देते है। राजभवन मे आकर प्रतिदिन इंतजार करता है कि वह दिन धन्य होगा जिस दिन मैं तपस्वी को अपने महलो मे पारणा करवाऊँगा। अपने हाथो से परोसँगा, उनका खूब स्वागत-सत्कार करूँगा। ऐसा चितन करते-करते उसे स्मृति मे आता है कि पूर्व मे जब भी तपस्वी आया, द्वार बद मिला। इस बार द्वारपाल को सचेत करता हूँ। राजा द्वारपाल को सचेत करता है कि अमुक दिन तपस्वी के पारणा है। उस दिन तुम किसी भी परिस्थिति मे द्वार बद नहीं करोगे। द्वारपाल ने कहा-महाराज की जैसी आज्ञा। अब राजा सुमंगल अत्यन्त उत्सुकता से तपस्वी के पारणे का इतजार कर रहे हैं, परन्तु विधि का विधान अकथनीय है। जैसे ही पारणे का दिन आता है, महाराज अस्वस्थ बन जाते हैं। पूरे राजभवन मे महाराज के अस्वस्थ होने से खलबली मच जाती है। द्वारपाल सोचता है कि जब भी तपस्वी के पारणे का दिन आता है तब राजा अस्वस्थ बन जाता है। वह यह बात राजकर्मचारियो तक पहुंचाता है। राजकर्मचारी अकारण तपस्वी पर आवेशित बन जाते हैं। जैसे ही तपस्वी आता है, सव आवेशजनित तो थे ही, क्रोधान्ध बन कर तपस्वी को सर्प की तरह घसीटते हए नगर से बाहर फेक देते हैं। तब अकारण तपस्वी के साथ इस प्रकार व्यवहार होने से वह बड़ा क्षुब्ध हो जाता है और क्रोध मे आकर निदान करता है कि यदि मेरी तपस्या का फल हो तो आगामी भव मे मै इस राजा को मारने वाला बनें । मैंने तो राजा का इतना सम्मान किया और राजकर्मचारियो ने इतना अपमान (क) धरणीधर-राजा (ख) निदान-तप के पल को पहले से याचना करना, एक शल्य
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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