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________________ 54 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय अगुलियो पर गिन रहा है और मन मे अरमान सजा रहा है, तपस्वी आयेगा, मैं बहुत दूर तक पॉव-पॉव चल कर उसकी अगवानी हेतु जाऊँगा। भक्तिभाव से राजप्रागण मे लाऊँगा और स्वय बैठकर उसका पारणा करवाऊँगा उसके लिए विशिष्ट भोजन बनवाऊँगा। इस प्रकार कल्पनालोक मे राजा सुमगल विहरण कर रहा था। निरन्तर तपस्वी के आगमन मे पलक-पॉवडे बिछाये था, लेकिन कर्म की गति बडी विचित्र है। निरन्तर इतजार करते-करते जिस दिन तपस्वी के पारणे का दिन आया, नृप के ख्वाबो का ताजमहल चरमरा कर ढह गया और नृपति अस्वस्थ बन गया। द्वारपाल ने द्वार बद करवा दिये। तपस्वी पारणे के लिए निकला, पॉव-पॉव चला। दो मास से निरन्तर तपश्चर्या में लीन था। शरीर क्लान्त, मन शात और शनै -शनै मजिल की ओर चलने लगा। लेकिन जैसे ही राजभवन तक पहुंचा तो देखा, द्वार बद है। कुछ समय इधर-उधर देखा लेकिन देवयोग से कोई दिखाई न दिया जो तपस्वी को पारणे के लिए राजभवन के प्रागण तक ले जा सके। शात-प्रशात अनुद्विग्नय मन से पुन तपस्वी अपने आश्रम मे लौट आया और मासक्षपण का प्रत्याख्यान कर लिया। तपस्वी अपनी तपश्चर्या मे तल्लीन है। भूख-प्यास को प्रशात भाव से सहन करते हुए अकाम निर्जरा करते हुए अपनी साधना मे सलग्न है। दूसरे दिन भूपति स्वस्थ होता है। जैसे ही स्वस्थ बनता है, उसी समय उसे तपस्वी के पारणे की स्मृति आती है। तुरन्त द्वारपाल को बुलाता है। महाराज द्वारा आमत्रित किये जाने पर द्वारपाल आता है और कहता है-महाराज की जय हो । आपका क्या आदेश है? राजा-कल तपस्वी आया था? द्वारपाल-महाराज ! आपका स्वास्थ्य अस्वस्थ था, इसलिये मैंने द्वार बद करवा दिये। आये भी होगे, लेकिन पुन लौट गये होगे। राजा-ओह ! बहुत बुरा हुआ। मैं स्वय तपस्वी के पास जाता हूँ। राजा अत्यन्त लज्जित होकर स्वय तपस्वी के पास पहुंचता है। भारी कदमो से चलकर पश्चात्ताप की भयकर आग मे जलता हुआ अत्यन्त विनम्रता से तपस्वी को प्रणाम करता हे और दबे शब्दो से बोलता है- महात्मन् । आप जैसे धैर्यशील तपस्वी आत्मा की मैंने अत्यधिक अविनय-आशातना की है। मेरे कारण दो माह से आप निराहार हैं ओर तीसरा माह भी आहार रहित निकालना पडेगा। (क) क्लान्त-थका हुआ (ख) अनुद्विग्न-संताप रहित -
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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