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________________ 52 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय का पुत्र था। मेरा अनन्य मित्र राजकुमार सुमगल मेरा रूप देखकर बहुत उपहास करता था। उसके उपहास को घोर अपमान समझकर मेरा मन बडा खिन्न हुआ और ससार से उदासीन रहने लगा। तभी मेरे भीतर मे वैराग्य के अकुर प्रस्फुटित हुए और मै विरक्त बनकर तापस धर्म मे दीक्षित बन गया। लोगो ने इस बात को श्रवण किया और बात एक कान से दूसरे कान तक हवा की तरह फैलने लगी। शनै -शनै बात राजा सुमगल के कानो तक भी पहुंच गई। तब राजा सुमगल ने विचार किया कि मेरा मित्र तापस जीवन स्वीकार कर उत्कृष्ट तपश्चर्या कर रहा है। मास-मास क्षपण की तपस्या कर रहा है। मुझे भी उसके दर्शन करना चाहिए और पारणे का निमत्रण देना चाहिए। ऐसा विचार कर वह सुमगल, सेनक तपस्वी के पास जाता है। उन्हे विधिवत् प्रणाम करता है और निवेदन करता है कि इस बार मासक्षपण का पारणा मेरे यहाँ करना है। राजा सुमगल के स्नेहाभिषिक्त आग्रहभरे निमत्रण को तपस्वी ने स्वीकार कर लिया । राजा सुमगल अत्यन्त हर्षित होता हुआ राजभवन को लौट गया। सेनक अपनी तपश्चर्या मे लीन था । वह मास-मास क्षपण की तपस्या करता और एक दिन उसी के यहाँ पारणा करता जिसका निमत्रण वह पहले ही स्वीकार कर लेता। यदि सयोग से वहाँ पारणा नहीं होता तो पुन बिना पारणा किये मासक्षपण धारण कर लेता, लेकिन दूसरे घर पारणे के लिए नहीं जाता था। अभी भी वह तपश्चर्या मे लीन था । पारणे के लिए उसको इस बार राजभवन मे जाना था। राजा सुमगल भी प्रतिदिन गिन-गिन कर उसके पारणे की बाट जो रहा था। समय अपनी गति से बढ़ रहा था। तपस्वी के मासक्षपण पूर्ण हुआ और वह पारणे के लिए राजभवन की ओर प्रस्थित हुआ। इधर तपस्वी पारणे के लिए राजभवन की ओर जा रहा है और उधर राजा सुमगल का स्वास्थ्य अस्वस्थ हो गया। राजा का स्वास्थ्य अस्वस्थ होने से द्वारपाल ने राजभवन के द्वार बद करवा दिये। उसे पता नहीं था कि आज कोई तपस्वी पारणा करने के लिए आयेगे। जैसे ही सेनक तपस्वी राजभवन के समीप पहुँचा, देखा राजभवन के द्वार बद है और कोई भी वहाँ मौजूद नहीं था जो तपस्वी को पारणे के लिए उसे भीतर ले जा सके। सेनक तपस्वी उस स्थिति को देखकर पुन लौट गया और पारणा किये बिना पुन मासक्षपण धारण कर लिया और जरा भी सुमगल पर क्रोध नहीं करता हुआ निष्कषाय भाव से तपश्चर्या मे लीन हो गया।
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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