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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 51 शनै -शनै निरन्तर वृद्धि को प्राप्त हो रहा था। अपनी मधुर किलकारियो से राजभवन के भव्य प्रागणो को अनुगुजित कर रहा था। अपनी बालसुलभ चेष्टाओ से सभी के आकर्षण का केन्द्र-बिन्दु बना हुआ था। जिस समय जितशत्रु के यहाँ सुमगल का जन्म हुआ उसी समय वहाँ के मत्री के यहाँ पर भी एक पुत्ररत्न का जन्म हुआ, जिसका नाम सेनक रखा गया। वह सेनक भी शनै -शनै वृद्धि प्राप्त करने लगा और एक दिन उसने राजकुमार सुमगल से अपनी मित्रता स्थापित करली। राजकुमार सुमगल ने अपने पूर्वभव मे शुभ नाम कर्म का बधन किया जिसके फलस्वरूप उसे सुडौल एव सुन्दर आकृतिवाला, आकर्षक अगोपाग वाला गात्र मिला, लेकिन सेनक ने पूर्वभव मे अशुभ नाम कर्म का उपार्जन किया जिसके परिणामस्वरूप उसे अशुभ आकार-प्रकार वाला शरीर मिला। उसकी इस शरीराकृति को देखकर हमउम्र के लोग प्राय हँसी उडाया करते थे। उसके मित्र तो उपहास करते ही थे, परन्तु उसका अनन्य मित्र सुमगल तो जब देखो तब उसका उपहास करता ही रहता था। निरन्तर उपहास पात्र बनने से सेनक के मन मे ससार से विरक्ति के भाव पैदा हो गये और चितन किया कि इस प्रकार हर समय हँसी उडने से मेरा मन खिन्न बना रहता है, फिर इस ससार मे रहने से लाभ क्या? अच्छा है, मैं तपस्वी बनकर अपने अशुभ कर्मो को तोडने का प्रयास करूं। इस प्रकार चितन कर एक दिन वह वहाँ से निकल चला। शहर से वन की ओर प्रयाण कर दिया। जब वह जगल से गुजर रहा था, तो उसने वन मे एक कुलपति तापस को देखा और उसके पास जाकर निवेदन किया-मैं ससार से उद्विग्न बनकर आपके चरणो मे आया हूँ। आप मुझे तापस दीक्षा देकर अनुगृहीत करे। तब कुलपति तापस ने उसके भावो को जानकर तापस दीक्षा दी। सेनक ने तापस दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् उष्ट्रिका व्रत ग्रहण किया और उत्कृष्ट तपश्चर्या करता हुआ विचरण करने लगा। विचरण करते-करते एक बार वह बसन्तपुर नगर मे आया, जहाँ उसका मित्र सुमगल राजगद्दी पर आसीन हो चुका था। वह तपस्वी वहाँ बसन्तपुर के वाहर आश्रम मे तपश्चर्या करते हए रहने लगा। पूरे नगर मे उस तपस्वी की उत्कृष्ट तपश्चर्या की ख्याति फैल गई और अनेक लोग नित्य-प्रति उसके दर्शन हेतु आने लगे। एक बार लोगो ने उस तपस्वी से पूछा कि आप कहाँ के निवासी हो? आपको वैराग्य कैसे आया? तब उस तपस्वी ने कहा कि में आपके नगर मे मत्री
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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