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16 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय प्राणियो का हनन करता है। अर्थ के लिए प्राणियो का घात करता है, काम के लिए प्राणियो का घात करता है, बलि आदि चढाने मे धर्म मानकर प्राणियो का घात करता है। वह इस घोरतम पाप कर्म का फल भोगने के लिए आयु समाप्त होने पर नरक मे पैदा होता है।25
नरक गति, जिसका नाम श्रवण करते ही रोगटे खडे हो जाते है, उसकी वज की बनी दीवारो मे जरा-सा भी छिद्र नहीं है। वहाँ से बाहर निकलने का कोई द्वार नहीं। वहाँ की भूमि अत्यन्त कठोर है। भयकर दुर्गन्ध निरन्तर प्रवाहित होती रहती है। सदैव भीषण अधकारमय बने वे नरकावास बडे ही बोभत्स लगते हैं। पीव और रुधिर के निरन्तर बहने से वहाँ पर सदैव कीचड बना रहता है। तलवार से भी अधिक तीक्ष्ण वहाँ की भूमि का स्पर्श है। वहॉ किसी को कोई शरण देने वाला नहीं। अनाथ बने वे नैरयिक जीव निरन्तर असह्य वेदना से सत्रस्त रहते हैं। पन्द्रह परमाधामी देव भीषण वेदनाएँ उन नारकी जीवो को देकर आनन्द प्राप्त करते हैं। वे परमाधामी देव इस प्रकार वेदना देते हैं।
1 अम्ब (परमाधामी)- ये नारको को ऊपर उछालकर नीचे पटकते हैं। 2. अम्बरीष-छुरी आदि शस्त्रो से नारको के शरीर के टुकड़े-टुकडे कर
भाड मे पकाते हैं। 3 श्याम-नारको को लातो. घूसो से मारकर जहाँ उन्हे वेदना मिलती
है, उन स्थानो मे पटक देते हैं। शबल-नारक जीवो की ऑते, नसे, कलेजे को बाहर निकालकर फेक
देते हैं। 5 रुद्र-भाले आदि नुकीले शस्त्रो मे नारको को पिरो देते है। 6 उपरुद्र-ये भयकर असुर नारको के अगोपागो को फाड देते हैं। 7 काल-ये नारको को कडाही मे पकाते हैं।
महाकाल-ये नारको के मास के खण्ड-खण्ड करके उन्हे जबरदस्ती
खिलाते हैं। 9 असिपत्र-ये तलवार जैसे तीक्ष्ण पत्ते नारको के शरीर पर गिराते हैं
और उनके टुकडे कर डालते हैं। 10 धनुष-तीक्ष्ण धनुष-बाण फेंककर नारको के शरीर का छेदन करते हैं। 11 कुम्भ-ये नारको को कुम्भियो मे पकाते हैं।
और
(क) नरक-जिसमें से सुख निकल गया है ऐसा दुख भोगने का स्थान (ख) परमाधामी-नारकी के देवो को दुख देने वाले देव