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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 275 ख दृष्टव्य-श्री गणधर सार्द्धशतकम्, श्री जिनदत्तसूरि, प्रका श्री जिनदत्तसूरि
ज्ञान भण्डार, सूरत, सन् 1944, पत्रांक 6-7। 79 क. श्रीमत् ज्ञाताधर्मकथांग, अभयदेववृत्ति, प्रका आगमोदय समिति, सन् 1919,
पत्रांक 1231 ख. विशेषणवती, जिनभद्र क्षमाश्रमण, प्रका. श्री ऋषभदेव जी केशरीमल जी
संस्था, रतलाम,सन् 1927, पत्राक 81 80. समवायांग सूत्र, श्री अभयदेव सूरि, आगमोदय समिति, सन् 1918, पत्राक 60-621 81 समवायांग, वही, पत्रांक 63-641 82 जिणधम्मो, वही, पृ.111 83 क. समवायांग, वही, पत्रांक 61-62) ख श्री औपपातिक सूत्र, अभयदेवसूरि, आगमोदय समिति, सन् 1916, सूत्र
34, पृ. 781 ग जैन धर्म दर्शन, डॉ. मोहनलाल मेहता, प्रका. पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध
संस्थान, वाराणसी, सन 1973, पृ 141 84. अलंकार तिलक 1/11 85 प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 33। 86 निशीथ चूर्णि 11,36181 87 प्राकृत साहित्य का इतिहास, डॉ जगदीश चन्द्र जैन, पृ. 427-28। 88 वृहत्कल्प भाष्य भाग-1 की वृत्ति गाथा 1231 में मगध, मालव, महाराष्ट्र, लाट,
कर्णाटक, गौड़, विदर्भ आदि देशों की भाषाओं को देशी भाषा कहा है। 89 क. भगवती वृत्ति 5/41
ख. औपपातिक वृत्ति, वही सूत्र 34, पृ. 148। 90. स्थानांग, अभयदेव, वही, स्थान 101 ख. आवश्यक सूत्रस्योत्तरार्ध (पूर्व भाग ) भद्रबाहु नियुक्ति भाष्य, हरिभद्रसूरि
वृत्ति, प्रका. आगमोदय समिति, सन् 1917, पृ. 5391 92 विशेषावश्यक भाष्य 19741 93 त्रिषष्टिश्लाका, वही, पृ 1051 94 महावीर चरित्र, गुणचन्द्र, सप्तम प्रस्ताव, वही, पृ. 3651 95 चउप्पन्नमहापुरिसचरियं, आ शीलांक, प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, वाराणसी, सन् 1961,
पृ 299-3031 96 तओ णं समणं भगवं महावीर उप्पण्णणाण सण धरे अप्पाणे च लोगं च