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274 : अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय साधु, भंते, लभेप्य मातुगामो .. पवज्ज।।
चुलवग्ग पृ 374 69 क स चे आनन्दे नालभिस्स मातुगामो पव्वज्ज,चिरट्ठितिकं आनन्द, ब्रह्मचरिय
अभविस्स... यस्मिं धम्मविनये लभति मातुगामो... पवज्जं, न तं ब्रह्मचरियं चिरट्ठितिकी
चुल्लवग्ग, पृ. 376-771 ख जैन धर्म और दर्शन, मुनि नथमल, सम्पा छगनलाल शास्त्री, प्र.स 1960,
प्रका मन्नालाल सुराणा, कलकत्ता, पृ.37-391 70 जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, श्री शांतिचन्द्रवृत्ति, द्वितीय वक्षस्कार, देवचंद लालभाई जैन
पुस्तकोद्धार, सन् 1920, पत्रांक 1461 71. तित्थं पुण चाउवन्नाइन्ने समणसंघो तं, समण समणीओ, सावया सावियाओ, भगवती
28, 8, 682 उद्धृत :- भगवान् महावीर एक अनुशीलन, आ. देवेन्द्र मुनि, पृ.
4171 72 क तस्य तीर्थकर नामकर्म विपाकोदयप्रभवत्वात्, उक्त चंत च कहं वेइज्जइ?
अगिलाए धम्म देसणाए इति, श्री प्रज्ञापना सूत्र, मलयगिरि, पत्रांक 11 ख. वैशाली के राजकुमार, तीर्थंकर वर्धमान महावीर, डॉ. नेमिचंद जैन, हीरा
भैया प्रकाशन, इन्दौर, च सं. सन 1996, पृ. 18-191 73. क अत्थं भासइ अरहा सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं सासणस्स हियट्ठाय, तओ
सुत्तं पवत्तेई। आ नियुक्ति, गाथा 1921 ख. भगवता अत्थो भणिता, गणहरेहिं गंथो कओ वाइयो च इति। आ चूर्णि,
जिनदास, पत्रांक 3341 ग इमे दुवालसंगे गणिपिडगे पण्णत्ते।
समवायांग, अभयदेवसूरि, आगमोदय समिति, सन् 1918, सूत्र 136, पत्रांक
106-71 74 क से जहाणामए अज्जो। मम नव गणा एगारस गणधरा, श्री स्थानांग सूत्र, प्रथम
विभाग, आगमोदय समिति, सन् 1918, सूत्र 91 ख अभिधान चिंतामणि, हेमचन्द्राचार्य, देवाधिदेव काण्ड,श्लोक 31 प्रका.
देवचद लालभाई, सन् 1946, पृ.51 75 भगवती सूत्र, तृतीय विभाग, अभयदेवसूरि, वही, शतक 25,61 76 जैन तत्व प्रकाश, पृ 25-351 77 जिणधम्मो, वही, पृ. 351 78 क आवश्यक नियुक्ति, गाथा 192, पृ. 791