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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग- द्वितीय : 265 दे सकता है। जिस व्यक्ति को देश का ज्ञान नही कि यह देश कैसा है ? यहाॅ की क्या दशा है? यहाँ क्या उचित हो सकता है और क्या अनुचित ? वह गीतार्थ नही हो सकता (वृहतकल्पभाष्य 951, 952 ) आचार्य भद्रबाहु और सघदास ने गीतार्थ के गुणो का निरूपण करते हुए कहा है - जो आय-व्यय, कारण-अकारण आगाढ (ग्लान) – अनागाढ, वस्तु–अवस्तु, युक्त-अयुक्त, समर्थ - असमर्थ, यतना - अयतना का सम्यक् ज्ञान रखता है, और साथ ही कर्त्तव्य कर्म का फल परिणाम भी जानता है, वह विधिवेत्ता गीतार्थ कहलाता है । अपवाद के सम्बन्ध मे निर्णय करने का, स्वय अपवाद सेवन करने का और दूसरो से यथापरिस्थिति अपवाद सेवन कराने का समस्त उत्तरदायित्व गीतार्थ पर रहता है । अगीतार्थ को स्वय अपवाद के निर्णय का सहज अधिकार नही है। बिना कारण अपवाद सेवन अतिचार बन जाता है। इसी को स्पष्ट करते हुए व्यवहार भाष्य वृत्ति उ10 गाथा 38 मे कहा है प्रतिसेवना के दो रूप हैं – दर्पिका और कल्पिका । बिना पुष्ट आलम्बन-रूप कारण के की जाने वाली प्रतिसेवना दर्पिका है और वह अतिचार है तथा विशेष कारण की स्थिति मे की जाने वाली प्रतिसेवना कल्पिका है, जो अपवाद है और वह भिक्षु का कल्प - आचार है । निशीय भाष्य (गाथा - 466 ) मे भी कहा है यदि मैं अपवाद का सेवन नहीं करूँगा, तो मेरे ज्ञानादि गुणो की अभिवृद्धि नही होगी इस विचार से ज्ञानादि के योग्य सन्धान के लिए जो प्रतिसेवना की जाती है, वह सालम्ब सेवना है। - — - यही सालम्ब सेवना अपवाद का प्राण है। अपवाद के मूल मे ज्ञानादि सद्गुणो के अर्जन तथा सरक्षण की पवित्र भावना ही प्रमुख है । निशीथ भाष्यकार (गाथा 485) ने ज्ञानादि साधना के सम्बन्ध मे बहुत ही महत्वपूर्ण उल्लेख किया है वहाँ पर कहा गया है कि जिस प्रकार अधकार के गर्त मे पडा हुआ मनुष्य लताओ का अवलम्बन कर बाहर तट पर आकर अपनी रक्षा कर लेता है, उसी प्रकार ससार के गर्त मे पडा हुआ साधक भी ज्ञानादि का अवलम्बन कर मोक्ष तट पर चढ जाता है । सदा के लिए जन्म-मरण के कष्टो से अपनी आत्मा की रक्षा कर लेता है । V उदायन उदायन वीतिभय नगर का राजा था। 8 राजाओ ने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थी उनमे एक उदायन भी था। महावीर के पास इन 8 राजाओ ने 1 1 1 1 ----
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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