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218 : अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय
यह तीन प्रकार की होती है
1 ज्ञा परिषद्
अज्ञानी किन्तु विनयशील तथा शिक्षा मानने मे
- निपुण बुद्धि सम्पन्न, विचारशील, गुणदोष को जानने वाली दीर्घदर्शी एव उचित अनुचित का विवेक करने वाली ज्ञा परिषद् होती है। अज्ञा परिषद् तत्पर जिज्ञासुओ की सभा, अज्ञा परिषद् होती है। दुर्विदग्धा परिषद् - मिथ्या अहकार से युक्त, तत्त्वबोध से रहित एव दुराग्रही व्यक्तियो की सभा दुर्विदग्धा परिषद् कही जाती है। XIII स्वर्णमुद्रा (कार्षापण)
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कार्षापण प्राचीन भारत में प्रयुक्त एक सिक्का था । वह सोना-चाँदी व ताबा इन अलग-अलग तीन प्रकार का होता था । प्रयुक्त धातु के अनुसार वह स्वर्णकार्षापण, रजतकार्पाषण, ताम्रकार्षापण कहा जाता था। स्वर्ण कार्षापण का वजन 16 मासे, रजत कार्षापण का वजन 16 पण (तोल - विशेष) और ताम्र, कार्षापण का वजन 80 रत्ती होता था ।
संस्कृत इग्लिश डिक्शनरी - सर मोनियर विलियम्स,
पृ 176
XIV हल
हल उस समय का पारिभाषिक शब्द है । 40,000 वर्ग हस्त भूमि का एक निवर्तन होता है तथा 100 निवर्तन का एक हल । निवर्तन का अर्थ है, हल चलाते हु बैलो का मुडना ।
डॉ जगदीशचन्द्र जैन ने 'लाइफ इन एशेट इण्डिया' पुस्तक मे (पृष्ठ 90 पर) एक हल एक एकड के बराबर बतलाया है।
अभयदेवसूरि ने भी दो सौ हाथ लम्बी और दो सौ हाथ चौडी अर्थात् 200x200=40,000 वर्ग हस्त भूमि को एक निवर्तन बीघा कहा हैं तथा 100 निवर्तन एक हल होता है। लीलावती गणित शास्त्र मे बतलाया है कि दस हाथ एक वास ओर बीस बास का एक निवर्तन होता है ।
सर मोनियर विलियम्स ने सस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी पृ. 560 पर भी 40,000 वर्ग हस्त का एक निवर्तन माना है ।
XV उपभोग परिभोग
बार-बार सेवन किया जाये वह उपभोग भवन, वस्त्र, वनिता आदि । परिभोग एक बार सेवन किया जाये वह परिभोग - आहार, कुसुम, विलेपनादि । उपासकदशाग, अभयदेवसूरि, पत्राक
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XVI उल्लणिया
उल्लणिया शब्द "द्रू" या लू धातु से बना है। 'द्रू' का अर्थ हे गीला