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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 5 के लिए कुछ सिद्धियाँ प्राप्त कर देवाकर्षण का प्रयास करता है और कहाँ महावीर ! भगवान् महावीर | जिनके लिए मै स्वय सेवा मे समुपस्थित था। साथ रहने का आकाक्षी, कष्ट से मुक्ति दिलाने को समुत्सुक लेकिन भगवान् वे वय से अल्प, देहोत्सेध से अल्प लेकिन पुरुषार्थ मे सहनशीलता आगे मे बहुत तोडने मे त्वरित गतिमान अपने कर्मों को नष्ट करने मे मात्र स्वय का ही अवलम्बन एकमात्र ध्येय था स्वय की शक्ति को जगाने का और उसको पाने हेतु निरन्तर चलते रहे। कोई कष्ट देता तो भी समभाव क्रोध करे तो समभाव गाली दे तो समभाव फॉसी लटकाये तब भी समभाव समभाव की पराकाष्ठा को कहना सरल है, सोचना सरल है, पर जीवन मे अपनाना अत्यन्त कठिन है । भगवान् महावीर ने अपने रोम-रोम मे निष्कषाय भाव को समा लिया था । मन, वचन, काया को कषाय के भीषणतम रोग से बचाते रहे । सदैव राग-द्वेष की आँधी से अपने-आप को दूर रखते रहे । माया की चिनगारियो को सरलता के जल से बुझाते रहे। लोभ के भीषण पारावार" को श्रुत शील की नौका से तैरते रहे और तैरते तैरते पार पहुँच गये। धन्य है ऐसे महान् पराक्रमशाली, धैर्य की पराकाष्ठा पर चलने वाले अपश्चिम तीर्थंकर भगवान् महावीर को, जिनका वह दिव्य तेजस्वी आभामण्डल, जिसे देखकर नयन हटते नही, मन थकता नही, चरण वहीं थम जाते है और मन मे उत्ताल तर तरगायित होती है मानो जीवन का सर्वस्व समर्पण कर डालूँ । स्मरण हो रहा है, उस ऋजुबालिका का, जहाँ भगवान् के पधारने से कण-कण पवित्र हो गया। एक नई ताजगी, नई स्फूर्ति, नई चेतना और नये वातावरण का निर्माण हो गया । अरे ! उस ऋजुबालिका की छटा को एक बार और निहार लूँ। यह चिन्तन कर अपनी अवधिज्ञान की धारा से शक्रेन्द्र ने पूर्वद्रष्ट ऋजुबालिका' पर ध्यानाकर्षित किया और नयनाभिराम दृश्यों से मन मे आनन्द का अनुभव करते हुए "ओह ! ऋजुबालिका का सोम्य छटा वाला कूल (क) समुत्सुक - सम्यक् प्रकार से उत्सुक (ख) देहोत्सेध-शरीर की ऊचाई (ग) पारावार-समुद्र (घ) अपश्चिम तीर्थकर अन्तिम तीर्थकर (ङ) उत्ताल-उछलती, चचल (च) अवधिज्ञान रूपी पदार्थों को देखने वाला ज्ञान (क) काल किनारा
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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