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अपश्चिम तीर्थकर महावीर -- 84 करो।
सेवक - जो आज्ञा। मित्र, आकर – महारानी की जय हो! क्या आदेश है?
त्रिशला - कुमार वर्धमान भोगों से विरक्त है। तुम उन्हें विवाह हेतु तैयार करो।
मित्र, "जो आज्ञा" कहकर वर्धमान के पास जाकर - वर्धमान. वर्धमान... वर्धमान - कौन? पीछे मुड़कर । अरे! तुम अभी?
मित्र - कुमार! किन खयालों में खो रहे हो? किसे स्मृति पटल पर उभार रहे हो?
वर्धमान – स्वयं को। स्वयं द्वारा स्वयं की खोज कर रहा हूं। मित्र - अभी तो जीवन साथी की खोज करो।
वर्धमान - जीवन-साथी........... सच्चा जीवन साथी आत्मा ही है।
मित्र - नहीं-नहीं..... किसी रूपवती स्त्री की खोज.......
वर्धमान- नहीं-नहीं, वे रिश्ते अनन्त जन्मों में अनन्त बार सभी के साथ कायम किये, लेकिन वे सब टूट गये। अब अटूट रिश्ता कायम करना है।
मित्र - कुमार, क्या कह रहे हो? प्रत्यक्ष सुख को छोड़कर कल्पित के लिए प्रयास करना निरर्थक है।
वर्धमान – यह सुख नहीं, सुखाभास है। दुःख का दावानल देने वाला है।
मित्र - नहीं-नहीं, अभी तुम नहीं जानते, जब विवाह होगा तब........... पता चलेगा।
तभी त्रिशला प्रवेश करके..
कुमार वर्धमान - अरे! मातुश्री आपका आना, इस समय? मुझे ही क्यों नहीं बुला लिया?
त्रिशला – ऐसे ही, तुमसे मिलने आ गयी। कुमार! ये मित्र क्या कह रहे हैं?