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अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 85
वर्धमान - कोई विशेष बात नहीं। मित्र - हम कुमार का विवाह देखना चाहते हैं। पर वर्धमान. त्रिशला - वर्धमान क्या कह रहे हैं? मित्र - वे तैयार नहीं हैं।
त्रिशला - वर्धमान तो सदैव आज्ञाकारी रहे हैं। बचपन से आज तक जो हमने कहा, इसने स्वीकारा है। अब भी मैं कुमार वर्धमान से यही कहने आई हूं। राजा समरवीर ने अपनी पुत्री यशोदा को मंत्रियों के साथ यहां पर वर्धमान से विवाह हेतु भेज दिया है। उसे हम ठुकरा नहीं सकते 182
वर्धमान -- ऐ....... यह. .... कैसे? ।
त्रिशला - कुमार! यह हमारी हार्दिक इच्छा है, नहीं चाहते हुए भी तुम्हें विवाह करना ही होगा। तुम्हारे पिताश्री ने इसी हेतु मुझे यहां भेजा है।
___वर्धमान, चिन्तित मुद्रा में। विवाह....... यह कैसे संभव होगा? क्या अभी भी भोगावली कर्म अवशेष हैं?
ज्ञान का उपयोग लगाकर- अरे! अभी तो भोगावली कर्म अवशेष हैं। यह सोचकर मौन रहते हैं।
त्रिशला - कुमार मैं, जा रही हूं, यशोदा को बहू बनाने। वर्धमान सलज्ज नयनों से भूमि पर निहारते हैं।
महारानी त्रिशला, सिद्धार्थ के पास जाकर- मैंने कुमार को विवाह हेतु तैयार कर लिया है।
सिद्धार्थ- हैं! क्या कहती हो! विश्वास नहीं हो रहा है।
त्रिशला - पर यह सत्य है राजन्! जल्दी तैयारी कीजिए विवाहोत्सव की। कहीं कुमार फिर विवाह को अस्वीकार नहीं कर दे।
सिद्धार्थ - जन्मोत्सव की तरह ही धूमधाम से विवाह-उत्सव करने हेतु चलो चलते हैं।
संदर्भः पूर्वभवों की यात्रा अध्याय - 8
(क) त्रिषष्टि श्लाका पुरुष चारित्र; श्री हेमचन्द्राचार्य: प्रका. श्री जैन धर्म प्रचारक सभा, भावनगर वि.सं. 1960; पुस्तक संख्या 71: पर्व