________________
26.
अपश्चिम तीर्थंकर महावीर – 211
आयरिउं पडिमाए लोगो आउट्टिओ वंदे।।516 ।। (इत्येवं गाथाइयं हारिभद्रीय वृत्तिगत) (ख) त्रिषष्टि श्लाका पु. चा.; वही; पृ. 85-86 आवश्यक चूर्णिकार जिनदास ने ग्यारहवां चातुर्मास वैशाली के स्थान पर मिथिला में किया, ऐसा उल्लेख किया है। वहां लिखा है- महिलाए वासारत्तो एक्कारसमो, चाउम्मासखमणं करेति। आवश्यक चूर्णि; पृ. 315 जबकि मलयगिरि, हरिभद्र, नेमिचन्द्र, गुणचन्द्र एवं हेमचन्द्राचार्य ने भगवान का ग्यारहवां चातुर्मास वैशाली में स्वीकार किया है। इसी को श्रमण भगवान् महावीर में कल्याणविजयजी एवं तीर्थंकर महावीर में इन्द्रविजयजी ने अपनाया है। (ख) ततो वैशालीनगरीमगमत् तत्रैकदेशे वर्षारात्रः। आवश्यक मलयगिरि; पृ. 294 (ग) ततो सामी वेसालिं नगरिं गतो, तत्थेक्कार समो वासारत्तो। आवश्यक हारिभद्रीय वृत्ति: 221 (घ) भयवं वेसालिए संपत्तो विहरमाणो उ। समरे उज्जाणम्मी, बलदेवगिहम्मि संठिओ भवयं । चाउम्मासियखमणं, उवसंपज्जितु वासासु । महावीरचरियं; 1142-43 (ड) महावीरचरियं; 233/1 (च) ततो विहरमाणोऽगाद्विशाली नगरी प्रभुः।। ___ तत्र चैकादशो वर्षाकालो व्रत दिवादभूत् । त्रिषष्टि; 10/4/343 (छ) श्रमण भगवान महावीर; कल्याणविजयजी; पृ. 41 (ज) तीर्थंकर महावीर; इन्द्रविजयजी; पृ. 229 प्र. भा. (क) आवश्यक चूर्णि; पृ. 316 पर यह उल्लेख है कि भगवान् ग्यारहवां चातुर्मास मिथिला में सम्पन्न करके तदनन्तर वैशाली पधारे। वहां पर भूतानन्द देव आये। जबकि आवश्यक मलयगिरि, पृ. 294 पर ऐसा उल्लेख है कि भगवान ने ग्यारहवां चातुर्मास वैशाली में किया और वहीं पर भूतानन्द देवा आये।
(ख) त्रिषष्टि श्लाका पु. चा.; पृ. 86 28. जीर्ण सेठ का कथानक, भाव. नियुक्ति चूर्णि एवं विशेषा. भाष्य
तथा चउप्पन्न महापुरुषचरियं में नहीं है किन्तु त्रिषष्टि श्लाका पुरुष चारित्र एवं महावीर चरियं में है।
27.