________________
अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 210 (ग) आवश्यक हारिभद्रीय; पृ. 220 विशेष- त्रिषष्टि श्लाका पु. चारित्र; चउपन्न महापुरुष चरियं; महावीर चरिय, गुणचन्द्र तथा महावीर चरियं, नेमिचन्द्र में संगम के 20 उपसर्गों का ही वर्णन है लेकिन संगम ने छह महीने तक जो प्रभु को गांव-गांव, नगर-नगर में कष्ट दिये, उनका वर्णन नहीं
है।
22
साथ ही, प्राचीन ग्रन्थों में संगम देव के लौटते समय प्रभु की आंखों में करुणा के अश्रु छलछला गये, ऐसा कोई उल्लेख नहीं है। लेकिन कुछ आधुनिक लेखकों ने ऐसी कल्पना की है कि संगम जिस समय लौट रहा था, प्रभु की आंखें करुणा से नम हो गयीं। तब संगम ने आंखें नम होने का कारण पूछा तो प्रभु ने फरमाया कि मेरे कारण तूं ने अनन्त संसार बढ़ा लिया है, इस कारण तुम्हें अनन्त संसार परिभ्रमण करना पड़ेगा, बस यही कारण है मेरी आंखें नम हो गयीं। यह कल्पना समयोचित प्रतीत नहीं होती क्योंकि चूर्णि आदि में संगम को अभव्य कहा है। अभव्य जीव तो संसार में ही सदा रहेगा, फिर संसार घटाने-बढ़ाने की बात कम संगत होती है। अतः पाठक इस पर चिन्तन करें। (क) आवश्यक चूर्णि; जिनदास; 314 (ख) आवश्यक मलयगिरि; 293 (ग) महावीर चरियं, नेमिचन्द्र; 1119-22 (घ) त्रिषष्टि श्लाका पु. चा.; वही; पृ. 84-85 पाठान्तर हरिकांत द्रष्टव्य- जीवाजीवाभिगम; तृतीय प्रतिपत्ति; पृ. 336; श्रीमधुकरजी म. सा.; आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर; सन्1989 जीवाजीवाभिगम; तृतीय प्रतिपत्ति: पृ. 336; प्रथम खण्डी श्रीमधुकरजी म. सा.; आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर; सन्1989 (क) आवश्यक चूर्णि; जिनदास; पृ. 315 आलभिय हरि पियपुच्छ, जितउवसग्गत्ति थोवमवसेसं । हरिसह सेयवि सावत्थि खंदपडिमा य सक्को उ। आलभियाए हरि विज्जु जिणस्स भत्तीए वन्दओ एइ। भगवं पिअपुच्छा जियउवसग्गत्ति थेवमवसेसं 1515 हरिसह सेयवियाए सावत्थी खंधपडिम सक्को य।