________________
अपश्चिम तीर्थंकर महावीर
206
आज प्रभु गोचरी पधारेंगे तो मैं अपने घर ले जाऊँगा लेकिन प्रभु ने ध्यान नहीं खोला। तब सोचा, प्रभु कल पारणा करेंगे, कल प्रभु को घर ले जाऊँगा । इस प्रकार प्रतिदिन आता और देखता भगवान गोचरी नहीं पधार रहे हैं तो वापिस लौट जाता । निरन्तर चार मासपर्यन्त भावना भाने पर भी प्रभु गोचरी नहीं पधारे ।
चातुर्मास का अन्तिम दिन आया। जीर्ण सेठ ने सोचा कि कल चातुर्मास समाप्त होने पर तो प्रभु अवश्यमेव पारणा करेंगे। कितना अच्छा होगा कि प्रभु मेरे यहां पारणा करें। मैं कितना पुण्यवान बनूंगा । मेरा जीवन धन्य बन जायेगा। इस प्रकार अनेक प्रकार की कल्पना करते हुए दिन व्यतीत हुआ। दूसरे दिन सूर्योदय के समय ही जीर्ण सेठ घर में आहार -पानी तैयार होने के पश्चात् भावना भाने लगा कि आज निर्दोष आहार–पानी तैयार है । अब प्रभु पधार जायें तो कितना अच्छा होगा। मैं आज अपने हाथों से प्रभु को आहार- पानी से प्रतिलाभित करूंगा । जब प्रभु पधारेंगे तो मैं उनके सन्मुख जाऊँगा, तीन बार वन्दन करूंगा और भक्तिपूर्वक उन्हें आहार- पानी बहरा कर चौमासी तप का पारणा कराऊँगा। इस प्रकार शुभ मनोरथ करता हुआ जीर्ण सेठ प्रभु के आगमन का पलकें बिछाकर, हृदय की घड़कन के साथ इन्तजार करने लगा ।
इधर भगवान चार माह की तपश्चर्या पूर्ण होने पर नवीन सेठ के घर पधारे। वह मिथ्यात्वी था । उसे पता नहीं था कि ये चरम तीर्थकर महावीर हैं। वह धन के नशे में चूर था। जैसे ही उसने प्रभु को देखा वह अपनी दासी से बोला कि साधु को भिक्षा देकर जल्दी विदा करदो । तब उस दासी ने चाटु लेकर उड़द के बाकले प्रभु को बहराये । प्रभु ने उन बाकुलों को खाकर पारणा किया । तत्काल देवों ने आकाश में देव - दुन्दुभि बजाई, वस्त्र वरसाये, स्वर्ण मोहरों की वर्षा की, सुगन्धित जल एवं पुष्प की वृष्टि की। श्रावस्ती नगरी में यह समाचार द्रुत गति से फैल गया कि अभिनव श्रेष्ठि ने एक साधु को पारणा कराया तो उसके यहां स्वर्ण मुहरों आदि की वर्षा हुई। लोग देखने के लिए आये । पूछा श्रेष्ठि से कि तुमने मुनि को क्या बहराया? तब उसने कहा मैंने खीर वहराई" । आकाश में अहोदान - अहोदान की ध्वनि हुई तो राजा