SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24 अपश्चिम तीर्थकर महावीर 146 जिहवा ने बाहर काढतो अभिमान युक्त थईने फरवा निकल्यो त्रिषष्टि श्लाका पु. चा; पुस्तक 7; पर्व 10; पृ. 45 देवेन्द्र मुनि की मान्यता है कि सर्प बांबी में था और वहां से निकला | द्रष्टव्य - श्री देवेन्द्र मुनि, भगवान् महावीर एक अनुशीलन, प्रका. श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय, प्रथम संस्करण, 1974 पृ. 310 (क) आव. चूर्णि; जिनदास, पृ. 278 (ख) आव. मलयगिरि, पृ. 273 (ग) आव. हरिभद्रीय; पृ. 196 (घ) महावीरचरियं; नेमिचन्द्र ; 981 ताहे पलोएंतो अच्छति अमरिसेणं, तस्स तं रूवं पलोएं तस्स ताणि विसभरिताणि अच्छीणि विज्झाताणि, सामिणो कंतिं सोम्मतं च दद्दूणं । आव. चूर्णि; जिनदास; पृ. 279 (क) आव. चूर्णि; जिनदास, पृ. 278 (ख) महावीरचरियं; नेमिचन्द्र ; 984 (क) आव. चूर्णि; जिनदास; पृ. 278 (ख) विशेषावश्यक भाष्य; 1902 (ग) महावीरचरियं; नेमिचन्द्र; 989 (क) ताहे तिक्खुत्तो आयाहिण पयाहिणं करेंतो मणसा भत्तं पच्चक्खाइ, तित्थगरो जाणइ ताहे सो विले तुंडं छोढूण ठितो आव. मलयगिरि, पृ. 273 (ख) विष भयंकर ऐवी मारी दृष्टि कोईना ऊपर पण न पड़ो।' ऐम धारी ने पोताना मस्तक ने राफडामा राखी । त्रिपष्टि श्लाका पु. चा.; पुस्तक 7; पर्व 10; पृ. 45 माऽहं रुट्टो समाणो लोगं मारेहं, सामी तत्थ अणुकंपणट्टाए अच्छति । आवश्यक चूर्णि; जिनदास, पृ. 279 तं सामी दहूण गोवालगवच्छवालगा अल्लियंति, रुक्खेहिं आवरेत्ता अप्पाणं पाहाणे खिवंति ण चलति त्ति अल्लीणा, रुद्धेहिं घट्टितो तहविण फं दति, तेहिं लोगस्स सिहं, ताहे लोगो आगंतुं सामिं वंदित्ता तंपि सप्पं वंदति महं च करेति । आवश्यक चूर्णि, जिनदास; पृ. 279 त्रिपष्टि श्लाका पु. चा; पुस्तक 7: पर्व 10 पृ. 46
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy