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अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 147
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(क) आव. चूर्णि; जिनदास पू. 279
(ख) आवश्यक चूर्णि, मलयगिरि, पृ. 274
त्रिषष्टि एलाका पु. चा.; पुस्तक 7: पर्व 10; पृ. 46
बिहार में गोतीहारी से 35 भील पर है सीतामढ़ी। उन्हीं दिनों इसका नाम श्वेताम्बी अथवा श्वेताम्विका था ।
द्रष्टव्य-- वर्द्धमान महावीर; लेखक श्री कृष्णदत्त भट्ट, प्रका. सन्गति ज्ञानपीठ, आगरा, प्र. सं. 1975; पृ. 30
(क) आवश्यक चूर्णि, मलयगिरि, पृ. 274-75 (ख) आवश्यक चूर्णि; जिनदास, पृ. 280-81
(ग) विशेषावश्यक भाष्य गाथा 1904 1905 1906 (घ) महावीर चरियं; गुणचन्द्र: 178
(ड़) निशीथ भाष्य गाथा 4218: पृ. 366: तृतीय भाग (क) आवश्यक चूर्णि; जिनदारा; पृ. 280-81 (ख) आवश्यक चूर्णि, मलयगिरि, पृ. 274-75
(ग) त्रिषष्टि शलाका पु. चा. पुस्तक 7: पर्व 10; पृ. 48-50 पेच्छति वित्थगररस उवसग्गं कीरमाणं, ताहे हिं चिंतियं अलाहि ता अन्गेण, सागिं गोएगो, आगया, एगेण नावा गहिया, एगो सुदादेण रागं जुज्झइ सो गहिडिगो, तस्रा पुण चचणकालो, इमे णु अहुणोववन्नया, सो तेहिं पराइतो, ताहे ते नागकुमारा तित्ययररस महिगं करेंति, सत्तं रूवं च गायंति, एक्लोगोऽवि । ततो सामी उचिन्नो, तत्थ देवेहिं सुरहिगं धोदयवारां पुष्पवासं च बुद्धं, तेऽवि पडिगया। आवश्यक, गलयगिरि, पृ. 275
(क) आवश्यक चूर्णि; जिनदास पृ. 282 (ख) आवश्यक चूर्णि, मलयगिरि, पृ. 275 (ग) विशेषावश्यक भाष्य; गा. 1907
(क) आवश्यक चूर्णि: जिनदास पृ. 282
(ख) भो पूरा ! किं विरान्नो अगुणन्तो लवखणाण परमत्यं । ऐसो विठुराण- महिओ अद्भुतरलक्खणसहरसो ।
महावीर चरियं ( नेमिचन्द्र ): 1030
(क) आवश्यक चूर्णि, मलयगिरि, . 275 (स्व) आवश्यक चूर्णि पृ. 282
(ग) महावीर चरिथं (नेमिचन्द्र ), 1036