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अपश्चिम तीर्थकर महावीर
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पत्तं सिस्साणं भविस्सति ?
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आवश्यक चूर्णि; जिनदास; पृ. 277
(क) आव. मलयगिरी; पृ. 272 (क) तत्थ दो पंथा उज्जुगो वंकोय, जो सो उज्जुगो सो कणकखलमज्झेणं वच्चइ, वंको परिहरंतो सामी उज्जुगेण पहावितो । आवश्यक चूर्णि, मलयगिरि, पृ. 273
(ख) आवश्यक चूर्णि; जिनदास; पृ. 277-78
(ग) त्रिषष्टि श्लाका पु. चा.; पुस्तक 7; पर्व 10; पृ. 43 कनखल का अपर नाम कनकखल है । द्रष्टव्य आवश्यक चूर्णि, मलयगिरि, पृ. 273 (क) आवश्यक चूर्णि; जिनदास; पृ. 278 (ख) आवश्यक चूर्णि, मलयगिरिः
पृ. 273
(ग) आवश्यक हरि, पृ. 195
(घ) महावीर चरियं नेमिचन्द
(ङ) महावीर चरियं (गुण. ): 5/ 159
(च) चउप्पन्न महापुरुष चरियं
त्रिषष्टि श्लाका पु. चा.; पुस्तक 7; पर्व 10; पृ. 43-27
(क) आवश्यक चूर्णि; जिनदास; पृ. 278 (ख) त्रिषष्टि श्लाका पु. चा.; पुस्तक 7; ततो चुतो कणगखले पंचण्हं तावसस्यानं आयातो, दारओ जातो, तत्थ से समावेण अतीव चंडकोवो, तत्थ चंडकोसिओत्ति णामं कतं । आवश्यक चूर्णि; जिनदास, पृ. 272 आवश्यक वृत्ति, मलयगिति = 273 (क) आवश्यक चूर्णि: पिन्वासः (ख) आवश्यक वृत्ति;
त्रिषष्टि श्लाका
“कुकर्म विपाल आज
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तीन कम न
से चंडकौशिक
आ वनमां दृष्टिविही
पण सा
थोडी द्वारे मे हडियो जैसे