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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 142 हैं और पुष्य से कहते हैं, "अरे मूर्ख! तूं क्यों शास्त्रों की निंदा करता है। शास्त्र में असत्य कुछ भी नहीं लिखा है। तूं प्रभु के बाह्य लक्षणों को देख रहा है, अन्तर को नहीं। इनके श्वास में कमल जैसी सुगन्ध आ रही है। इनका रुधिर मधुर और उज्ज्वल है। इनका शरीर मैल तथा पसीने से रहित है। ये धर्मतीर्थ के चक्रवर्ती, तिरण-तारण की जहाज, विश्व को अभयदान देने वाले हैं। ये राजा सिद्धार्थ के पुत्र राज्य-ऋद्धि को छोड़कर अणगार बने हैं। हम चौसठ इन्द्र इनकी सेवा में तत्पर रहते हैं। इनके दर्शन निष्फल नहीं जाते। अतः मैं तुम्हें इच्छित फल देता हूं।" यों कहकर इन्द्र ने उसको मनोवांछित पुरस्कार दिया। वह पुष्य नैमित्तिक अपने को धन्य मानता हुआ वहां से चला गया और शक्रेन्द्र भी प्रभु को वन्दन करके लौट गये।। __महाप्रभु महावीर कायोत्सर्ग पूर्ण होने पर कायोत्सर्ग पार कर वहां से विहार कर गये। विहार करते हुए अनुक्रम से राजगृह नगर पधारे। वहां नगर के बाहर नालन्दा नामक भूमिभाग था। उसमें किसी बुनकर की तन्तुशाला थी। प्रभु उस तन्तुशाला में पधारे और वहीं पर वर्षावास करने का निश्चय किया। द्वितीय चातुर्मास : नालन्दी पाड़ा में :- बुनकर की तन्तुशाला में प्रभु चातुर्मासार्थ पधार गये हैं । शाला के एक भाग में प्रभु मासक्षपण की तपस्या का प्रत्याख्यान करके खड़े हैं। कायोत्सर्ग में लीन आत्मसाधना का अनूठा उपक्रम चल रहा है। उस समय में मंखलि नामक कोई मंख (चित्रपट) दिखाकर आजीविका करने वाला था। वह अपनी भद्रा भार्या को साथ लेकर ही आजीविका करता था। एकदा वे दोनों सरवण नामक गांव में आये। वहां भद्रा को प्रसव पीड़ा हुई जिससे वे दोनों बहुत गायों वाली गोशाला में चले गये। वहीं पर भद्रा ने एक पुत्र को जन्म दिया। गोशाला में पैदा होने से उस पुत्र का नाम गोशालक रखा गया। वह गोशालक धीरे-धीरे बड़ा हुआ। वह भी अपने पिता की तरह आजीविका चलाने लगा। वह गोशालक गांव-गांव में चित्रपट लेकर घूमता और आजीविका चलाता था। उसका स्वभाव प्रारम्भ से ही कलह करने का था। वह माता-पिता से झगड़ा करके चित्रपट लेकर घर से निकल गया। घूमता-घामता राजगृह में नालन्दीपाड़ा में आया जहां
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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