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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 141 नौका किनारे लग चुकी थी। लोग अब भयरहित होकर नौका से उतर रहे थे और बोलते जा रहे थे कि "धन्य है इन महापुरुष को। इन महापुरुष के प्रभाव से आज हम बच गये। प्रभु भी नौका से उतरे। ईर्यापथिकी आलोचना की और थूणाक सन्निवेश की ओर चलने लगे। गंगा तट की उस आर्द्र-कोमल रेती पर पांव रखते हुए प्रभु के सुन्दराकार पैरों की आकृति हूबहू उतर गयी। एक सामुद्रिक लक्षणशास्त्र का ज्ञाता पुष्य नामक व्यक्ति उधर से निकला। उसने प्रभु के पांवों के निशान देखे। देखकर अचम्भित रह गया। ये निशान तो चक्रवर्ती सम्राट के पांव के हैं। तो क्या चक्रवर्ती यहां से अकेले नंगे पांव गये हैं? क्या उनके साथ कोई नहीं है? उनको राज्य ऋद्धि नहीं मिली अथवा किसी ने उनके साथ धोखा कर लिया? ऐसे महापुरुष की इस समय में मुझे सेवा करनी चाहिए ताकि प्रसन्न होकर वे मुझे कुछ देंगे । ऐसा मन में चिन्तन करता हुआ वह पुष्य नैमित्तिक वहां से प्रभु के कदम-चिह्नों के साथ-साथ चलता जाता है। चलते-चलते स्थूणा नामक गांव के पास अशोकवृक्ष तक पहुंच जाता है। वहां वे चरणचिह्न समाप्त होते हैं और देखता है कि एक भिक्षु वहां खड़ा है जिसके सिर पर मुकुट का चिह्न है। वक्ष पर श्रीवत्स का लांछन है। भुजा पर चक्रादि के चिह्न हैं। हाथ शेष नाग जैसे लम्बे हैं। नाभि दक्षिणावर्ती और विस्तीर्ण है। ऐसे लक्षणों को दृष्टिगत कर सोचता है, इसके शरीर पर भी चक्रवर्ती के लक्षण हैं, परन्तु यह चक्रवर्ती नहीं है। तब मेरा समस्त परिश्रम व्यर्थ चला गया। यह सामुद्रिक शास्त्र प्रामाणिक नहीं है। किसी अनाप्त पुरुष द्वारा बनाया गया है। जैसे मृग मरुभूमि में जल के लिए दौड़ता है लेकिन जल नहीं मिलता वैसे ही इस शास्त्रानुसार मैं यहां दौड़ा आया परन्तु कोई सार नहीं निकला। ऐसे शास्त्रों को धिक्कार है। ऐसा चिन्तन करता हुआ वह पुष्य बड़ा खेदित हो रहा था। इधर शक्रेन्द्र देवलोक में बैठे थे। वह देख रहे थे कि इस समय चरम तीर्थकर भगवान् कहां हैं? वे अपने अवधिज्ञान से देखते हैं तो प्रभु और उनके पास खड़े पुष्य की सारी बात जान लेते हैं। तुरन्त वहां से, जहां भगवान महावीर थे, वहां आते हैं। प्रभु को वन्दन करते
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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