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अपश्चिम तीर्थकर महावीर 120 तभी वहां जाना होगा । ऐसा सोचकर सभी लोग पुजारी इन्द्रशर्मा का इन्तजार कर रहे थे। गांव में रहने वाला उत्पल नैमित्तिक, जो पहले पार्श्व-परम्परा का साधु था, लेकिन कर्मोदय से श्रमणत्व छोड़कर गृहस्थ बन गया, उसे भी जब प्रभु के यक्षायतन में ठहरने का वृत्तान्त ज्ञात हुआ तब वह भी इन्तजार करने लगा कि कब इन्द्रशर्मा आये और कब मन्दिर जाऊँ? थोड़ी देर बाद इन्द्रशर्मा उपस्थित हुआ । उसके आने पर उत्पल नैमित्तिक और ग्रामवासी मन्दिर में पहुंचे। वहां का दृश्य देखकर सब अचम्भित रह गये कि भगवान महावीर जीवित हैं और यक्ष ने उनकी अर्चा की है जिसकी दिव्य गन्ध सम्पूर्ण वातावरण में प्रसरित है। वे सभी लोग यह देखकर बड़े हर्षित होते हैं और उत्कृष्ट सिंहनाद से प्रभु का अभिवादन करते हुए कहते हैं, देवार्य! आपने देव को भी उपशांत कर दिया। आपकी महिमा अपरम्पार है । आप अजात शत्रु हैं। आप धन्य हैं, जो परीषहजयी ही नहीं, कालजयी बन गये हैं । इस प्रकार पुनः–पुनः गुणकीर्तन कर सभी लौट जाते हैं ।
सबके जाने के पश्चात् उत्पल नैमित्तिक भगवान को वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार कहता है- स्वामिन् आपने अन्तिम रात्रि में दस स्वप्न देखे हैं । यद्यपि आप तो उनका फल जानते ही हैं 1 तब भी मैं आपके समक्ष निमित्तबल से ज्ञात दस में से नौ स्वप्नों का फल बतलाता हूं। वे सही हैं या मिथ्या, आप बतला दीजिए। ऐसा कहकर वह उत्पल नैमित्तिक भगवान को दस स्वप्नों के बारे में इस प्रकार बतलाता है
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ताड़-पिशाच को पछाड़ने से आप भविष्य में मोहकर्म को नष्ट करेंगे।
श्वेत पुंस्कोकिल देखने से आप शुक्ल ध्यान में रमण करेंगे। रंग-बिरंगे पुंस्कोकिल देखने से ज्ञान के रंगों से अनुरंजित द्वादशांग की प्ररूपणा करेंगे।
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दो रत्नमालाएं देखने का अर्थ मैं जान नहीं पाया।
श्वेत गायों का समूह देखने से चतुर्विध संघ आपकी सेवा-समर्चा में तत्पर रहेगा ।
प्रफुल्लित पद्मसरोवर देखने से भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष